Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३३६
विशेषार्थ- अनाहारमार्गणा में कार्मणकाययोगवत् सत्त्वयोग्यप्रकृति १४८ हैं । गुणस्थान १-२४-१३-१४ ये पाँच हैं। यहाँ मिथ्यात्व-सासादन-असंयत और सयोगीगुणस्थान में सर्वरचना कार्मणकाययोगवत् जानना, किन्तु अयोगीगुणस्थान में गुणस्थानवत् (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि अनुसार) कथन जानना। अनाहारमार्गणा में असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टिसत्त्वयोग्यप्रकृति १४८, गुणस्थान ५
सत्व गुणस्थान असत्व सत्त्व व्युच्छित्ति
विशेष મિથ્યાત્વ सासादन
| ४ (तीर्थकर, आहारकद्रिक और नरकायु) असंयत
६३ ६३(गाथा ३४२ की सन्दृष्टि में १३वें गुणस्थानके
__ अनुसार) सयोगी अयोगीद्विचरम
(गाथा ३४२ की सन्दृष्टि अनुसार) समय पर्यन्त अयोगी के
५३ (गाथा ३४२ को सन्दृष्टि अनुसार) चरमसमय में
नोट- संस्कृत टीकाकार ने गाथा का अर्थ करते हुए उत्तरार्ध के अर्थ में “एक बार तो बलभद्र, माधव (नारायण) से अर्चित श्री नेमि तीर्थकरदेव ने तथा दूसरी बार बलदेव और माधवचन्द्रविद्यदेव नामा अपने भाइयों से पूजित सिद्धान्तचक्रवर्ती श्री नेमिचन्द्राचार्य ने मार्गणास्थान में कर्मप्रकृतियों का सत्त्व सम्बन्धी कधन किया है।" ऐसा कहा है। अब बन्ध-उदय-सत्त्वाधिकार को पूर्ण करते हुए अन्तिम मंगलाचरण करते हैं
सो मे तिहुवणमहिदो, सिद्धो बुद्धो णिरंजणो णिच्चो।
दिसदु वरणाणलाहं, बुहजणपरिपत्थणं परमसुद्धं ॥३५७|| अर्थ- जो तीनलोक से पूजित, सिद्ध, बुद्ध, कर्मरूपी अञ्जन से रहित और नित्य हैं वे मुझको ज्ञानीजनों से प्रार्थना करने योग्य ऐसे परम-उत्कृष्ट शुद्धज्ञान (केवलज्ञान) का लाभ देवें।
इस प्रकार नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तीविरचित गोम्मटप्सारकर्मकाण्ड की सिद्धान्त ज्ञानदीपिका नामा हिन्दी टीका में बन्ध-उदय-सत्त्व नामक द्वितीय अधिकार पूर्ण हुआ।