Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३१९
माघवीपृथ्वी में असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्वयोग्यप्रकृति १४५, गुणस्थान ४
सत्व गुणस्थान असत्त्व सत्व व्युच्छित्ति
विशेष मिथ्यात्व
१४५ सासादन
__० २ (आहारकद्विक) मिश्र
१४५ असंवत
१४५ तिर्यंचगति में सामान्य से सत्त्वयोग्य प्रकृति १४७ हैं, क्योंकि यहाँ तीर्थङ्करप्रकृति का सत्त्व नहीं
“तियञ्चगति में सामान्य से असत्व-सत्त्व-सत्वव्युच्छित्ति सम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्वयोग्य प्रकृति १४७, गुणस्थान ५
असत्व
सत्त्व
व्युच्छित्ति
विशेष
गुणस्थान मिथ्यात्व
सासादन
०
२
(आहारकद्विक)
मित्र
१४७
०
१४७
२
०
असंयत देशसंयत
२ (नरकायु व मनुष्यायु) | (भुज्यमान तिर्थञ्चायु अपेक्षा)
सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच, योनिमतितिर्यंच, पर्याप्ततिर्यंच, लब्ध्यपर्याप्ततिर्यंच में भी सत्त्व इसी प्रकार जानना, किन्तु विशेषता यह है कि लब्ध्यपर्याप्त तिर्यंच में नरक-देवायु का सत्त्व नहीं है अत: सत्त्व १४५ प्रकृति का है। ण हि सासणो अपुण्णे इत्यादि वचनों से लब्ध्यपर्याप्तकतिर्यंच के सासादनगुणस्थान नहीं है इसलिए एकमात्र मिथ्यात्वगुणस्थान ही है। शेष चार प्रकार के तिर्यंचों में ५५ गुणस्थान हैं।
मनुष्यगति में सामान्यमनुष्य, पर्याप्तमनुष्य और मनुष्यनी में गुणस्थानवत् सर्व कथन है, किन्तु मनुष्यनी के क्षपकश्रेणी में विशेषता यह है कि क्षपकश्रेणी में स्थित मनुष्यनी के तीर्थङ्करप्रकृति का सत्त्व नहीं है, क्योंकि तीर्थङ्करप्रकृति की सत्तावाला अर्थात् सम्यग्दृष्टि जीव मनुष्यनियों में उत्पन्न नहीं होता है