Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३१७
अब गत्यादिमार्गणाओं में सत्त्व को कहने के लिए परिभाषासूत्र कहते हैं
तिरिए ण तित्थसत्तं, णिरयादिसु तिय चउक्क चउ तिण्णि ।
आऊणि होति सत्ता, सेसं ओघादु जाणेज्जो ||३४५॥ अर्थ- तिर्यञ्चगति में तीर्थकरप्रकृति की सत्ता नहीं होती, नरकगति में भुज्यमान नरकायु तथा बध्यमानत्तिर्यञ्च व मनुष्यायु का सत्त्व है, देवायु का नहीं है। तिर्यञ्चगति में भुज्यमानतिर्यञ्चायु एवं बध्यमान नरक-तिर्यञ्च-मनुष्य और देवायु का सत्त्व है। मनुष्यगति में भुज्यमान मनुष्यायु तथा बध्यमान नरक-तिर्यञ्च-मनुष्य और देवायु का सत्त्व है। देवगति में भुज्यमानदेवायु और बध्यमानतिर्यञ्च व मनुष्यायु का सत्त्व है। अवशेष प्रकृति का सत्त्व गुणस्थानवत् जानना। (जिप्सको भोग रहा है उसको भुज्यमान और भविष्यकाल में उदयहोने योग्य जिसका बन्ध हुआ है उसको बध्यमान कहते है।) अथानन्तर नरक-तिर्यञ्च व मनुष्यगति में सत्त्व का कथन दो गाथाओं से करते हैं
ओघं वा जेरइये, ण सुराऊ तित्थमस्थि तदियोत्ति। छट्टित्ति मणुस्साऊ , तिरिए ओघं ण तित्थयरं ॥३४६।। एवं पंचतिरिक्खे, पुण्णिदरे णस्थि णिरयदेवाऊ ।
ओघं मणुसतियेसुवि अपुण्णगे पुण अपुण्णेव ॥३४७।। अर्थ- नरकगति में गुणस्थानवत् सत्ता जानना, किन्तु यहाँ देवायु का सत्त्व नहीं है अत: १४७ प्रकृतियाँ सत्त्वयोग्य हैं। तीर्थङ्कर प्रकृति का सत्त्व तृतीयनरकपर्यन्त ही है, मनुष्यायु का सत्त्व छठे नरकपर्यन्त ही है। तिर्थञ्चगति में भी सत्त्व का कथन गुणस्थानवत् ही जानना, परन्तु तीर्थङ्करप्रकृति का सत्त्व नहीं है अतः वहाँ सत्त्वयोग्य १४७ प्रकृतियाँ हैं।॥३४६।।
इसी प्रकार पाँच प्रकार के तिर्यञ्चों में भी सामान्यरीति से सत्त्व जानना, किन्तु विशेषता यह है कि लब्ध्यपर्याप्ततिर्यञ्चों में नरक व देवायु का सत्त्व नहीं है। तीन प्रकार के मनुष्यों में भी गुणस्थानवत् ही सत्त्व समझना, किन्तु लब्ध्यपर्याप्तकमनुष्य में लब्ध्यपर्याप्तकतिर्यञ्च के समान नरक व देवायु और तीर्थङ्करप्रकृति का सत्त्व न होने से १४५ प्रकृतियों का सत्त्व पाया जाता है ।।३४७।।
विशेषार्थ- नरकगति में सामान्य से सत्त्वयोग्यप्रकृति देवायुबिना १४७ हैं। घर्मादितीन नरकपृथ्वियों में सत्त्वयोग्यप्रकृति १४७ ही हैं। गुणस्थान आदि के चार हैं। मिथ्यात्वगुणस्थान में असत्त्व का अभाव है, सत्त्व १४७ प्रकृति का, सत्यव्युच्छित्ति नहीं है। सासादनगुणस्थान में आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृति का असत्त्व तथा १४४ प्रकृति का सत्त्व, व्युच्छित्ति शून्य ! मिश्रगुणस्थान में असत्त्व ५