Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३२१
क्षपक
११३
भाग ६
भाग ७
१०१
भाग १
बद्घायुष्क उपशम सम्यग्दृष्टि के उपशम श्रेणी अपेक्षा उपशमक १३८,१४६
अबद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रेणी १३८
अपेक्षा भाग २ १२२
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) भाग ३
(गाधा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) भाग ४
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) भाग ५
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) (गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार)
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) भाग ८ १०४
{गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) . भाग २
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) सूक्ष्मसाम्पराय
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) क्षीणकषाय ४७
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) सयोगकेवली
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) अयोगकेवली | ६३
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) द्विचरमसमय अयोगकेवली |१३५
(गाथा ३४२ की संदृष्टि के अनुसार) चरमसमय आगे देवगति में सत्त्वादि का कथन करते हैं -
ओघं देवे ण हि णिरयाऊ, सारोत्ति होदि तिरियाऊ ।
भवणतियकप्पवासियइत्थीसु ण तित्थयरसत्तं ॥३४८।। अर्थ- देवति में सामान्योक्त गुणस्थानवत् सत्त्वादिका कथन है, किन्तु नरकायु का सत्त्व नहीं होने से १४७ प्रकृति का सत्त्व है तथा सहस्रारस्वर्ग तक ही तिर्यंचायु का सत्त्व है, आगे नहीं । भवनत्रिक के सभी देवों में तथा कल्पवासिनीदेवियों में तीर्थङ्कर प्रकृति का सत्त्व नहीं है।
विशेषार्थ- सौधर्म से सहसारस्वर्गपर्यन्त १२ स्वर्गों में १४.७ प्रकृतियों का सत्त्व है, क्योंकि तिर्यंचायु का सत्त्व सहस्रारस्वर्ग तक ही है। गुणस्थान आदि के ४ हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में किण्ह दुगसुहतिलेस्सय वामेविणितित्थयरसत्तं अर्थात् कृष्ण, नील तथा तीन शुभ लेश्या में मिथ्यादृष्टि