Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्पटसार कर्मकाण्ड-३२५
| (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि के समान)
अयोगकेचली | ६३ । द्विचरम
समय अयोगकेवली | १३५ चरम समय
१३ । १३ । (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि के समान)
एकेन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और पृथ्वी-जल-वनस्पतिकाय में
असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्ति सम्बन्धी सन्दृष्टिसत्त्वयोग्यप्रकृति १४५, गुणस्थान आदि के २
असत्त्व
सासादन
१४३
सत्त्व गुणस्थान
| सत्त्व व्युच्छित्ति विशेष मिथ्यात्व
| | २ (आहारकद्विक) शङ्का - उद्वेलना किसे कहते हैं?
समाधान - जिस प्रकार रस्सी को बल देकर बटा था, पुनः बट को खोल दिया उसी प्रकार जिन प्रकृतियों का बन्ध किया था पश्चात् उनको उद्वेलना भागहार से अपकर्षण करके अन्य प्रकृतिरूप प्राप्त कराकर नाशकरना उद्वेलना कहलाती है। अब उद्वेलनारूप प्रकृतियों के नाम कहते हैं
हारदु सम्म मिस्सं, सुरदुग णारयचउक्कमणुकमसो।
उच्चागोदं मणुदुगमुब्वेल्लिज्जंति जीवेहिं ॥३५०।। अर्थ - आहारकद्विक, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकअङ्गोपाङ्ग, उच्चगोत्र, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी ये १३ प्रकृतियाँ उद्वेलनप्रकृतियाँ हैं।
अथानन्तर उद्वेलनप्रकृतियों के स्वामी कहते हैंचदुगदिमिच्छे चउरो, इगिविगले छप्पि तिणि तेउदुगे। सिय अस्थि णत्थि सत्तं, सपदे उप्पण्ण ठाणेवि ॥३५१।।