Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३२०
और तीर्थंकर प्रकृति का सत्त्व होने पर नपुंसक और स्त्रीवेद के उदय से संक्लिष्ट परिणामी जीन के क्षपकश्रेणी में आरोहण का अभाव है। (गाथा ३५४)
सामान्यमनुष्य, पर्याप्तमनुष्य, मनुष्यिनी में देशसंयतगुणस्थान में नरक व तिर्यंचायु की सत्ता नहीं है इसलिए इस गुणस्थान में १४६ प्रकृति का सत्त्व और दो प्रकृति का असत्त्व है। मनुष्यनी के क्षपकश्रेणी में तीर्थङ्करप्रकृति की सत्ता का अभाव है, इस कारण से अपूर्वकरणगुणस्थान में सत्त्व १३७ और असत्त्व १.२४ प्रकृति का जाना। इसी प्रकार अनितिकरणगुणस्थान के प्रथमभाग से अयोगीगुणस्थानपर्यन्त गुणस्थानोक्त सत्त्वप्रकृतियों से एक-एक प्रकृति हीन रूप से सत्त्व जानना, किन्तु असत्त्व गुणस्थानोक्त ही है।
लव्ध्यपर्याप्तक मनुष्य में लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यञ्च के समान तीर्थद्धर, नरकायु और देवायुनिना सत्त्वयोग्यप्रकृति ५४५ और गुणस्थान १ मिथ्यात्त्र ही है। सामान्य व पर्याप्त मनुष्य की अपेक्षा असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्वयोग्यप्रकृति १४८
असत्त्व
सत्त्व
गुणस्थान मिथ्यात्च
१४८
सत्त्व व्युच्छित्ति
विशेष १४८ (नानाजीवों की अपेक्षा) ३. (आहारऋद्विक-तीर्थकर) १ (तीर्थंकर) | २ (नरक व तिर्यञ्चायु)
सासादन
भित्र
१४७
१४८
असंवत देशसंयत
प्रमत्त
अप्रमत्त
| ८ (अनन्तानुबन्धी ४ कषाय, दर्शनमाह ३ देवायु)
अपूर्वकरण
उपशमक
१४६
बद्धायुष्क उपशम सम्यग्दृष्टि के उपशम क्षेणीअपेक्षा अबद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दधि के उपशम श्रेणी
क्षपक
१३८
अपेक्षा
अनिवृत्तिकरण १०
१३८
| (गाथा ३४२ की सन्दृष्टि के अनुसार)