Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३१८
तीर्थङ्करप्रकृति का, सत्त्व १४६ प्रकृति का, व्युच्छित्ति नहीं है। असंयतगुणस्थान में असत्त्व नहीं है, सत्त्व १४७ प्रकृति का, सत्त्वव्युच्छित्ति का यहाँ भी अभाव है। धर्मा-वंशा-मधा इन तीन पृथ्वियों में असत्व-संव-सत्त्वव्युच्छित्ति-सम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्वयोग्यप्रकृति १४७, गुणस्थान ४
सत्त्व व्युच्छित्ति
असत्व
सत्व
विशेष
गुणस्थान मिथ्यात्व सासादन
मिश्र
३ (तीर्थंकर व आहारकद्विक) १ (तीर्थंकर)
असंयत
अञ्जना-अरिष्टा-मघवी नामा ४थी, ५वीं व ६ठी पृथ्वी में देवायु व तीर्थकर प्रकृति के बिना सत्त्वयोग्य १४६ प्रकृति हैं, गुणस्थान ४ हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में असत्त्व और सत्त्वव्युच्छित्ति का अभाव है, सत्त्वप्रकृति १४६ हैं। सासादनगुणस्थान में असत्त्व आहारकद्विक का, सत्त्व १४४ प्रकृति का, व्युच्छित्ति नहीं है। मिश्र व असंयतगुणस्थान में भी असत्त्व और सत्त्वव्युच्छित्ति नहीं है, इन दोनों गुणस्थानों में सत्त्व प्रकृति १४६-१४६ हैं। अजना-अरिष्टा-मघवी पृथ्वियों में असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्वयोग्यप्रकृति १४६, गुणस्थान ४
सत्व
असत्व
सत्त्व
व्युच्छित्ति
विशेष
०
गुणस्थान मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत
०
| २ (आहारदिक)
१४६
०
०
माधवीनामक सप्तमपृथ्वी में मनुष्यायु, देवायु और तीर्थङ्करप्रकृतिबिना सत्त्वयोग्य १४५ प्रकृतियाँ हैं। गुणस्थान आदि के ४ हैं। यहाँ पर मिथ्यात्व, मिश्न और असंयतगुणस्थान में असत्त्व और सत्त्वव्युच्छित्ति का अभाव है, किन्तु सासादनगुणस्थान में आहारकद्विक का असत्त्व पाया जाता है। चारों ही गुणस्थानों में सत्त्वव्युच्छित्ति नहीं है तथा सत्त्व चारों गुणस्थानों में क्रम से १४५-१४३-१४५ और १४५ प्रकृति का है।