Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३२२
गुणस्थान में तीर्थकर का सत्त्व नहीं होता । इस वचन से तीर्थङ्कर प्रकृति के सत्त्व बिना १४६ प्रकृति का सत्त्व, असत्त्व १ तीर्थङ्करप्रकृति का, सत्त्वव्युच्छित्ति नहीं है। सासादनगुणस्थान में असत्त्वप्रकृति आहारकद्विक और तीर्थङ्कर सत्त्वप्रकृति १४४, व्युच्छित्ति शून्य। मिश्रगुणस्थान में असत्त्व १ तीर्थश्वरप्रकृति का, सत्त्व १४६ प्रकृति का । असंयनगुणस्थान में असत्त्व का अभाव होने से सत्त्व १४७ प्रकृति का। मिश्र और असयतगुणस्थान में सत्त्वव्युच्छित्ति नहीं है। सौधर्मस्वर्ग से सहस्रारस्वर्गपर्यन्त असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टि -
सत्त्वयोग्यप्रकृति १४७, गुणस्थान आदि के चार
असत्व
सत्त्व
गुणस्थान मिथ्यात्व
व्युच्छित्ति
विशेष |१ (तीर्थङ्कर)
३ (आहारकद्विक व तीर्थक्कर) | ५ (तीर्थङ्कर)
सासादन
मिश्र
असंयत
शेष आनतादि ४ स्वर्गों में और नवग्रैवेयक में नरकायु-तिर्यंचायुबिना सत्त्व १४६ प्रकृति का है। गुणस्थान मिथ्यात्वादि ४ हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में असत्त्व एक तीर्थङ्करप्रकृति का, सत्त्व १४५ प्रकृति का। सासादनगुणस्थान में असत्त्व आहारकद्विक, तीर्थङ्करप्रकृति का, सत्त्व १४३ प्रकृति का । मिश्रगुणस्थान में असत्त्व १ तीर्थङ्करप्रकृति का, सत्त्व १४५ प्रकृति का। असंयतगुणस्थान में असत्त्व नहीं है, सत्वप्रकृति १४६ । यहाँ चारों ही गुणस्थानों में सत्त्वव्युच्छित्ति का अभाव है। आनतादि ४ स्वर्ग तथा नवग्रैवेयक में असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्वयोग्यप्रकृति १४६, गुणस्थान ४
असत्त्व
सत्त्व
गुणस्थान मिथ्यात्व
सत्त्व व्युच्छित्ति
विशेष ० १ (तीर्थकर)
| ३ (तीर्थकर व आहारकद्विक) ० १ (तीर्थंकर)
सासादन
१४३
मिश्र
असंयत
१४६
नौअनुदिश, पञ्चअनुत्तर विमानों में नरकायु व तिर्यञ्चायु के बिना सत्त्वयोग्य प्रकृतियाँ १४६ हैं और गुणस्थान एक असंयत ही है।