Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
१०४
१०२
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३१५ चतुर्थ भाग
|१(स्त्रीवद) :... ... ... ... .. .. .. पंचम भाग ११२
६ (हास्यादि नोकषाय) षष्ठ भाग १०६
१ (पुरुषवेद) सप्तम भाग १०७
१ (सज्वलन क्रोध) अष्टम भाग
१ (सञ्चलन मान) नवम भाग
१ (सज्वलन माया) सूक्ष्मसाम्पराय
१ (सज्वलन लोभ) क्षपक क्षीणमोह
१६(५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण,
५ अन्तराय, निद्रा, प्रचला) सयोगकेवली | ६३ ।
६३ (घातियाकर्म की ४७, नरक-देव और तिर्यञ्चायु, नरकद्विक, तिर्यञ्चद्विक, . एकेन्द्रियादि चारजाति, आतप, उद्योत,
साधारण, सूक्ष्म, स्थावर) अयोगकेवली | ६३ । ८५ । ७२ । ७२(५ शरीर, ५ बन्धन, ५ संघात, ६ संहनन, के द्विचरम
३ अंगोपांग, ६ संस्थान, ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस, ८ स्पर्श, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुस्वर-दुःस्वर,देवगति-देवगत्यानुपूर्वी,प्रशस्तप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, निर्माण, अयशस्कीर्ति, अनादेय, प्रत्येक, अपर्याप्त, अगुरुलघु, उपघात, परधात, उच्छ्वास, साता
या असाता में से कोई एक, नीचगोत्र) अयोगकेवली १३५ १३ | १३ व्यु. १३ (साता-असातावेदनीय में से एक, चस्म समय में
मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय, सुभग, त्रस-बादरपर्याप्त, आदेय, यशस्कीर्ति, तीर्थंकर, मनुष्यायु,
उच्चगोत्र, मनुष्यगत्यानुपूर्वी) अब उपशमश्रेणीवाले के चारित्रमोहनीय की शेष २१ प्रकृतियों के उपशम का विधान कहते हैं
खवणं वा उवसमणे, णवरि य संजलण पुरिसमज्झम्हि। मज्झिमदोद्दो कोहा-दीया कमसोवसंता हु ॥३४३।।