Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३१४ ४५, सत्त्वप्रकृति १०३,व्युच्छिन्नप्रकृति १ । सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में असत्त्वप्रकृति ४६, सत्त्वप्रकृति १०२, व्युच्छिन्नप्रकृति १। क्षीणकषायगुणस्थान में असत्त्वप्रकृति ४७, सत्त्वप्रकृति १०१ और व्युच्छिन्नप्रकृति १६ । सयोगकेवली गुणस्थान में असत्त्वरूप प्रकृति ६३, सत्त्वप्रकृति ८५. व्युच्छित्ति का अभाव है। अयोगीगुणस्थान के द्विचरमसमयपर्यन्त असत्त्वप्रकृति ६३, सत्त्वप्रकृति ८५, व्युच्छिन्नप्रकृति ७२ । चरमसमय में असत्त्वरूप प्रकृति १३५, सत्त्वरूप प्रकृति १३, व्युच्छिन्नप्रकृति १३ ।
नोट- १४ वें गुणस्थान में मनुष्यगत्यानुपूर्वी का उदय नहीं है अत: शेष ७२ प्रकृतियों के साथ स्तिबुकसंक्रमण द्वारा मनुष्यगत्यानुपूर्वी की भी सत्त्वव्युच्छित्ति द्विचरमसमय में हो जाती है, चरमसमय में केवल १२ प्रकृतियों की सत्त्वव्युच्छित्ति होती है। क्षपकश्रेणी की अपेक्षा गुणस्थानों में असत्त्व-सत्त्व-सत्त्वव्युच्छित्ति की सन्दृष्टि
सत्त्वयोजन मर्स:१४८ अतृतियारधाम : :
सत्त्व
असत्व
| व्युच्छित्ति
विशेष
१४८
गुणस्थान मिथ्यात्व सासादन मिश्र असंयत देशसंयत प्रमत्त अप्रमत्त
१४७ १४८
१४६
अपूर्वकरण
१
३ (आहारकद्विक-तीर्थकर) १ (तीर्थकर) १ (नरकायु) असत्त्व १ (नरकायु) १ (तिर्यञ्चायु) २ (नरकायु व तिर्यञ्चायु) ८ (अनन्तानुबन्धीकषाय ४, देवायु, दर्शन___ मोहनीयकी ३) १० (अनन्तानुबन्धीकषाय ४, दर्शनमोहनीय ३,
नरक-तिर्यञ्च व देवायु) १६(नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, विकलत्रय ३, स्त्यानगृद्धि
आदि निद्रा ३, उद्योत, आतप, एकेन्द्रिय,
साधारण, सूक्ष्म, स्थावर) । ८ (अप्रत्याख्यानकी ४ कषाय और
प्रत्याख्यानकी ४ कषाय) १ १ (नपुंसकवेद)
अनिवृत्तिकरण | १०
क्षपकप्रथम भाग
द्वितीय भाग
१२२
८
तृतीय भाग
१
१. घ.पु. ६ पृ. ४१७