Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ३१३
हैं। अयोगीगुणस्थान के चरमसमय में जिसका उदय है ऐसी साता असाता में से एकवेदनीय, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशस्कीर्ति, तीर्थङ्कर, मनुष्यायु, उच्चगोत्र, मनुष्यगत्यानुपूर्वी इन १३ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है ।
अव आचार्य गुणस्थानों में असत्त्व और सत्त्वरूप प्रकृतियों को कहते हैं
णभातगिणभइगि दोहो, दस दससोलसङगा दिहीणेसु । सत्ता हवंति एवं, असहायपरक्कमुद्दिनं ।। ३४२ ।।
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अर्थ - मिथ्यात्व से क्षपकअपूर्वकरणगुणस्थानपर्यन्त क्रम से शून्य तीन-एक शून्य - एक - दोदो और दस प्रकृतियों का असत्त्व जानना तथा अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथमभाग में १०. द्वितीयभाग में १६ प्रकृति का असत्त्व है। आगे तृतीयादिभागों में आठआदि प्रकृतियों का असत्त्व है। यहाँ असत्त्वरूप प्रकृतियों को सत्त्वरूप सर्व (१४८ ) प्रकृतियों में से घटाने पर अवशेष प्रकृतियाँ अपने-अपने गुणस्थानों में सत्त्वप्रकृतियाँ हैं सो सहायतारहित है पराक्रम जिनका ऐसे वर्धमानस्वामी ने कहा है ।
विशेषार्थ जिन प्रकृतियों की सत्ता नहीं पाई जावे उसे असत्त्व और जिनकी सत्ता पाई जाती है उसे सत्त्व कहते हैं ।
मिथ्यात्वगुणस्थान में असत्त्व शून्य, सत्त्वप्रकृति १४८, व्युच्छित्तिशून्य । सासादनगुणस्थान में असत्त्वप्रकृति ३, सत्त्व १४५ प्रकृति का, व्युच्छित्तिशून्य । मिश्रगुणस्थान में असत्त्वप्रकृति १, सत्त्व १४७ प्रकृति का, व्युच्छित्ति शून्य । असंयत गुणस्थान में असत्त्व शून्य, सत्त्वप्रकृति १४८, व्युच्छित्ति १ प्रकृति की। देशसंयतगुणस्थान में असत्त्वप्रकृति १, सत्त्वप्रकृति १४७, व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १ । प्रमत्तगुणस्थान में असत्त्वरूप प्रकृति २, सत्त्वरूप प्रकृति १४६, व्युच्छिन्नप्रकृति शून्य । अप्रमत्तगुणस्थान में असत्त्वरूप प्रकृति २, सत्त्वरूप प्रकृति १४६, व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ८ हैं । अपूर्वकरणगुणस्थान में असत्त्वरूप प्रकृति १०, सत्त्वरूपप्रकृति १३८, व्युच्छित्तिरूप प्रकृति शून्य ।
अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के प्रथमभाग में असत्त्वरूप प्रकृतियाँ १०, सत्त्वरूप प्रकृतियाँ १३८, सत्त्व से व्युच्छिन्नप्रकृति १६ । दूसरे भाग में असत्त्वरूप प्रकृतियाँ २६, सत्त्वरूप प्रकृतियाँ १२२, व्युच्छित्तिरूप प्रकृतियाँ ८ हैं। तृतीयभाग में असत्त्व ३४ प्रकृति का, सत्त्व ११४ प्रकृति का व्युच्छित्ति १ प्रकृति की । चतुर्थभाग में असत्त्व ३५ का, सत्व ११३ का, व्युच्छित्ति १ की । पञ्चमभाग में असत्त्व ३६ का, सत्त्व ११२ का और व्युच्छित्ति ६ की । षष्ठभाग में असत्त्वप्रकृति ४२, सत्त्वप्रकृति १०६, व्युच्छिन्नप्रकृति १ । सप्तम भाग में असत्त्वरूप प्रकृति ४३, सत्त्वरूप प्रकृति १०५ व्युच्छिन्नप्रकृति १ । अष्टम भाग में असत्त्वप्रकृति ४४, सत्त्वप्रकृति १०४ व्युच्छिन्नप्रकृति १ । नवमभाग में असत्त्वप्रकृति