Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२४३
होने से) असंयतगुणस्थान में अनुदयप्रकृति १५, उदयप्रकृति ९२, व्युच्छिन्नप्रकृति (अप्रत्याख्यानकषाय ४, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय, अयशस्कीर्ति) ८ हैं। देशसंयतगुणस्थान में अनुदयरूपप्रकृति २३, उदयप्रकृति ८४ तथा असंयतगुणस्थानवत् व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ८ ही हैं। सामान्यतिर्यञ्चसम्बन्धी उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदय की सन्दृष्टि
उदययोग्य प्रकृति १०७, गुणस्थान ५
उदयगुणस्थान | व्युच्छित्ति | उदय | अनुदय । मिथ्यात्व
१०५
विशेष २ (सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति) ५ (मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण)
सासादन
९ - भानगुन ४. एजेन्द्रियादि जाति ४,
स्थावर) मिश्र १
१६ (९+७+१ तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी-१
सम्यग्मिथ्यात्व)
१ (सम्यग्मिथ्यात्व) असंयत्त । ८ । ९२ । १५ १५ (१६+१-२ सम्यक्त्व व तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी)
८ (अप्रत्याख्यानकषाय ४, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी,
दुर्भग, अनादेय और अयशस्कीर्ति) देशसंयत
८ (प्रत्याख्यानकषाय ४, उद्योत, तिर्यञ्चगति,
नीचगोत्र और तिर्यञ्चायु) अथानन्तर सामान्यपञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च और पर्याप्तक पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चों में उदयादि कहते हैं
थावरदुगसाहारणताविगिविगलूण ताणि पंचक्खे।
इत्थिअपज्जत्तूणा, ते पुण्णे उदयपयडीओ ॥२९५॥ अर्थ - सामान्यतिर्यञ्चसम्बन्धी पूर्वोक्त १०७ प्रकृति में से स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, आतप, एकेन्द्रिय और विकलत्रय की तीन इन ८ प्रकृतियों के बिना शेष ९९ प्रकृतियां पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च के उदय योग्य हैं।
विशेषार्थ - यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति मिथ्यात्व व अपर्याप्त इन दो प्रकृति की,