Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२८८
प्रमत्तसंयत
। ५
७६
७२
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अप्रमत्तसंयत । ४ अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसाम्पराय उपशान्तमोह । २ क्षीणमोह
३३(२७+८-३५-२ आहारकद्विक)
५ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) ३८ ४ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) ६ (हास्यादि ६ नोकषाय)
ज्वलनक्रोध-मान-माया) | १ (सूक्ष्मलोभ) ५५ । २ (वजनाराच व नाराचसंहनन)
| १६ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार)
६०
।
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अचक्षुदर्शन में तीर्थङ्करबिना शेष १२१ प्रकृतियाँ हैं। गुणस्थानमिथ्यात्व से क्षीणमोहपर्यन्त १२ हैं। यहाँ उदयादिकी सर्वरचना गुणस्थान की रचनावत् है सो निम्नसन्दृष्टि से जानना। '
अचक्षुदर्शनावरण में उदयादिसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्यप्रकृति १२१, गुणस्थान १२
उदयव्युच्छित्ति
उदय
गुणस्थान मिथ्यात्व
सासादन
"
मिश्र
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असंयत
अनुदय
विशेष | ४ (सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, आहारकद्विक)
५ (मिथ्यात्व, आतप,सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण) १०(4+४=१+१ नरकगत्यानुपूर्वी) ९ (गाथा २६४ के अनुसार) २१(१०+९+३ शेषआनुपूर्वी-१ सम्यग्मिथ्यात्द)
१ (सम्यग्मिथ्यात्व) अनुदय १७ (२१+१=२२-५, गत्यानुपूर्वी ४ और सम्यक्त्व) व्यु, १७ (गुणस्थानोक्त) ८ (गुणस्थानोक्त) ४०(३४+८=४२.२ आहारकद्विक) ५ (गुणस्थानोक्त) ४ (गुणस्थानोक्त) ६ (गुणस्थानोक्त) ६ (गुणस्थानोक्त) १ (गुणस्थानोक्त)
२ (गुणस्थानोक्त) ६४ । १६ (गुणस्थानोक्त)
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देशसंयत प्रमत्तसंयत
अप्रमत्त अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसाम्पराय उपशान्तमोह क्षीणभोह
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