Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२९८
उदयप्रकृति आहारकद्विकसहित ८०, अनुदयप्रकृति २६ । अप्रमत्तगुणस्थान में सम्यक्त्वबिना गुणस्थानोक्त ३ प्रकृति की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ७५, अनुदयप्रकृति ३१ । अपूर्वकरणगुणस्थान में व्युच्छित्रप्रकृति ६, उदयप्रकृति ७२, अनुदयप्रकृति ३४ । अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ६, उदयप्रकृति ६६, अनुदयप्रकृति ४० । सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १ सूक्ष्मरूप सज्वलनलोभ, उदयप्रकृति ६०, अनुदयप्रकृति ४६ । उपशान्तमोहगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति २, उदयप्रकृति ५९, अनुदयप्रकृति ४७। क्षीणमोहगुणस्थान में व्युच्छित्ति १६ प्रकृति की,उदय ५७ प्रकृति का और अनुदय ४९ प्रकृति का है। सयोगकेवली में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ३०, उदयप्रकृति ४२, अनुदयप्रकृति तीर्थङ्करबिना ६४, क्योंकि यहाँ तीर्थङ्करप्रकृति का उदय पाया जाता है। अयोगकेवली में व्युच्छिन्नप्रकृति १२, उदयप्रकृति १२ और अनुदयप्रकृति ९४ जानना। क्षायिकसम्यक्त्व में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि- .
उधयोग्य प्रकृति १०६, गुणस्थान ११ गुणस्थान | उदय- | उदय | अनुदय
विशेष व्युच्छित्ति | असयत
३ (आहारकद्विक व तीर्थकर) २० (१७ तो गाथा
२६३ के अनुसार एवं तिर्यञ्चायु, उद्योत,
तिर्यञ्चगति) देशसंयत
५ (प्रत्याख्यानावरणकषाय ४, नीचगोत्र) ५ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि के अनुसार)
२६(२३+५८२८-२ आहारकदिक) अप्रमत्त
३ (अन्तिम तीन संहनन) अपूर्वकरण
६ (हास्यादि नोकषाय) अनिवृत्तिकरण
६ (तीनवेद, सज्वलनक्रोध-मान-माया) सूक्ष्मसाम्परम्य
१ (सूक्ष्मरूप सज्वलनलोभ) उपशान्तमोह
२ (वज्रनाराच व नाराचसंहनन) क्षीणमोह
१६(गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) सयोगकेवली
६४(४९+१६८६५ -१ तीर्थकर) अयोगकेवली
३० (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार)
२३
प्रमत्त