Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३००
यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति २(मिथ्यात्व और अपर्याप्त), उदयप्रकृति १०९, अनुदयप्रकृति सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और आहारकद्विक ये चार । सासादनगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति अनन्तानुबन्धीकषाय ४, उदयप्रकृति १०६, नरकगत्यानुपूर्वी का उदय नहीं होने से अनुदयप्रकृति ७ । मिश्रगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १ सम्यग्मिथ्यात्व, उदयप्रकृति १००, तिर्यञ्च-मनुष्य व देवगत्यानुपूर्वी का उदय न होने से तथा सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति का उदय है अत: अनुदयप्रकृति १३ हैं। असंयतगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूपप्रकृति १७, उदयप्रकृति नरकादि चारों गत्यानुपूर्वी और सम्यक्त्वसहित १०४, अनुदयप्रकृति ९। देशसंयतगुणस्थान में व्यक्तिलप्रकृति , उदय प्रकृति ८७, अनुदयप्रकृति २६ । प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ५, उदयप्रकृति ८१, अनुदयप्रकृति ३२। अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ४, उदयप्रकृति ७६, अनुदयप्रकृति ३७। अपूर्वकरणगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ६, उदयप्रकृति ७२, अनुदयप्रकृति ४१ । अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में ६ प्रकृति की व्युच्छित्ति, ६६ प्रकृति का उदय, ४७ प्रकृति का अनुदय है। सूक्ष्मसाम्पराय में सूक्ष्मरूप सज्वलनलोभ की व्युच्छित्ति, ६० प्रकृति का उदय और ५३ प्रकृतियों का अनुदय है। उपशान्तमोह गुणस्थान में २ प्रकृति की व्युच्छित्ति, ५९ प्रकृति का उदय तथा ५४ प्रकृति का अनुदय जानना। क्षीणमोहगुणस्थान में गुणस्थानोक्त १६ तथा सयोगी व अयोगीगुणस्थान सम्बन्धी ४२ प्रकृतियों में से तीर्थङ्करबिना शेष ४१ इस प्रकार ५७ प्रकृति की व्युच्छित्ति, ५७ प्रकृति का ही उदय और ५६ प्रकृति अनुदयरूप जानना । सञ्जीमार्गणा में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि -
उदययोग्यप्रकृति ११३, गुणस्थान १२॥
उदयगुणस्थान | ब्युच्छित्ति | उदय मिथ्यात्व
अनुदय
सासादन
मिश्र
विशेष ४ (सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्त्व, आहारकट्टिक) २ (मिथ्यात्व, अपर्याप्त) ७ (४+२+१ नरकगत्यानुपूर्वी) ४ (अनन्तानुबन्धीकषाय) १३(७+४=११+३ गत्यानुपूर्वी
१ सम्बग्निथ्यात्व) १७ (गुणस्थानोक्त गाथा २६४ के अनुसार) ८ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) ३२(२६+८=३४-२ आहारकद्विक) ५ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) | ४ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार)
असंयत देशसंयत प्रमत्त
अप्रमत्त