Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३०४
अप्रमत्त
४ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) अपूर्वकरण
६ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) अनिवृत्तिकरण
६ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) सूक्ष्मसाम्पराय
१ (सूक्ष्मरूप सज्वलन लोभ) उपशान्तमोह
२ (वज्रनाराच व नाराच संहमन) क्षीणमोह
१६(गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार) सयोगकेवली
७६ । ७६ (६१+१६-७७-५ तीर्थंकर) __ अनाहारकमार्गणा में उदययोग्य प्रकृति ८९, गुणस्थान मिथ्यात्व, सासादन, असंयत, सयोगी, अयोगी ये ५ हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ३, उदयप्रकृति ८७, अनुदयप्रकृति २। साप्तादनगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १०, उदयप्रकृति ८१, अनुदय प्रकृति ८। असंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ५१, उदयप्रकृति ७५, अनुदयप्रकृति१४। सयोगकेवलीगुणस्थान में उदयव्युच्छित्ति साता-असाता में से कोई एक, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ-अशुभ, तैजस-कार्मण, वर्णादिचार, अगुरुलघु इन १३ प्रकृति की, उदयप्रकृति २५, अनुदयप्रकृति ६४ । अयोगीगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १२ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार), उदयप्रकृति १२ और अनुदयप्रकृति ७७ हैं।
अनाहारक में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्यप्रकृति ८९, गुणस्थान ५
मिध्यात्व
उदयगुणस्थान | व्युच्छित्ति | उदय अनुदय
विशेष २ (सम्यक्त्व और तीर्थकर)
३ (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त) सासादन
८ (३+२=५+३ नरकद्विक-नरकायु) असंयत
१४(१०+८८१८-४ सम्यक्त्व, मनुष्य-तिर्यञ्च
और देवगत्यानुपूर्वी)
५१(गाथा ३१८-३१९ की सन्दृष्टि अनुसार) सयोगी
६४(१४+५१-६५-१ तीर्थंकर) १३(साता-असाता में से एक, निर्माण, स्थिर,
अस्थिर, शुभ-अशुभ, तैजस, कार्मण,
अगुरुलघु और वर्णादि चार) अयोगी । १२ । १२
॥ इति उदयप्रकरण समाप्त । १. सयोगकेवली के अनाहारकअवस्था केवलीसमुद्धात में होती है, किन्तु वहाँ उदयव्युच्छित्ति किसी भी प्रकृति की नहीं
होती है।