Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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. ... गोम्पटमार कर्शमष्ट, २०६: :: : अब आयुबन्ध होने पर सम्यक्त्व और अणुव्रत-महाव्रत सम्बन्धी नियम कहते हैं
चत्तारिवि खेत्ताई, आउगबंधेण होदि सम्मत्तं ।
अणुवदमहव्वदाई ण लहदि देवाउगं मोत्तुं ।।३३४।। अर्थ - चारों ही गतियों में किसी भी आयु का बन्ध होने पर सम्यक्त्व होता है, किन्तु देवायु के बिना अन्य तीनआयु का बन्ध करने वाला अणुव्रत-महाव्रत धारण नहीं कर सकता।
भावार्थ - यदि चारों आयु में से किसी भी आयु का बन्ध पहले हुआ हैं तो सम्यक्त्व होने में कोई बाधा नहीं है, किन्तु यदि पहले नरक-तिर्यञ्च और मनुष्यायु में से किसी एक आयु का बन्ध हुआ है तो तिर्यञ्च तो अणुव्रत तथा मनुष्य अणुव्रत और महाव्रत धारण करने में समर्थ नहीं है। यदि देवायु पहले बँधी है तो अणुव्रत-महाव्रत धारण में कोई बाधा नहीं है।
णिरियतिरिक्खसराउग-सत्ते ण हि देससयलवदखवगा। अयदचउक्कं तु अणं, अणियट्टीकरणचरिमम्हि ॥३३५।। जुगवं संजोगित्ता, पुणोवि अणियट्टिकरणबहुभागं।
वोलिय कमसो मिच्छ, मिस्सं सम्म खवेदि कमे॥३३६||जुम्मं॥ अर्थ - नरक,तिर्यञ्च तथा देवायु का सत्त्व होने पर क्रम से देशव्रत-महाव्रत और क्षपकश्रेणी नहीं होती है। असंयतादि चार गुणस्थानवाले जीव अनिवृत्तिकरणपरिणाम के चरमसमय में अनन्तानुबन्धी की युगपत् विसंयोजना करते हैं। पुनः तीन करण करके अनिवृत्तिकरण काल के बहुभाग बीत जानेपर शेष संख्यातवें एकभाग में क्रम से मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व तथा सम्यक्त्वप्रकृति का क्षय करते हैं। इस प्रकार सात प्रकृतियों के क्षय का क्रम है ।।३३५-३३६ ।।
विशेषार्थ - यहाँ तीन गुणस्थानों में प्रकृतियों का सत्त्व पूर्वोक्त ही समझना | असंयतगुणस्थान से अप्रमत्तगुणस्थानपर्यन्त उपशमसम्यग्दृष्टि तथा क्षयोपशमसम्यग्दृष्टि, इन दोनों के असंयतगुणस्थान में अनन्तानुबन्धी आदि की उपशमरूप सत्ता होने से १४८ प्रकृतियों का सत्त्व है। देशसंयतगुणस्थान में नरकायु न होने से १४७ प्रकृति का सत्त्व है। प्रमत्तगुणस्थान में नरक तथा तिर्यञ्चायु का सत्त्व नहीं है अतः यहाँ १४६ प्रकृति का ही सत्व है। तथैव अप्रमत्तगुणस्थान में भी १४६ प्रकृति का ही सत्त्व है। क्षायिकसम्यग्दृष्टि के अनन्तानुबन्धी चार कषाय,मिथ्यात्व,सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व इन सातप्रकृतियों का सत्त्व असंयतादि गुणस्थानों में नहीं है अतः क्षायिक सम्यग्दृष्टि के इन गुणस्थानों में सात-सात प्रकृतियों को कम करके सत्त्व पाया जाता है।