Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२९७ वेदक (क्षायोपशमिक) सम्यक्त्व में उदययोग्य प्रकृति १०६ हैं क्योंकि यहाँ उदययोग्य १२२ प्रकृति में से आदि के तीनगुणस्थानों में क्रम से व्युच्छिन्न होने वाली ५-९ व १ प्रकृति तथा तीर्थङ्करप्रकृति इन १६ का उदय नहीं है। गुणस्थान असंयतगुणस्थान से अप्रमत्तपर्यन्त ४ हैं। असंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति गुणस्थानोक्त १७, क्योंकि कृतकृत्यवेदकवाले जीव का गमन चारों गतियों में सम्भव है इसलिए चारों गत्यानुपूर्वी की व्युच्छित्ति होती है। उदयप्रकृति १०४, अनुदयप्रकृति २(आहारकद्विक)। देशसंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति गुणस्थानोक्त ८, उदयप्रकृति ८७, अनुदयप्रकृति १९ । प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति गुणस्थानोक्त ५, उदयप्रकृति ८१, अनुदयप्रकृति २५ । अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ४ तथा उपरितनगुणस्थानों में व्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियाँ क्रम से ६+६+१+२+१६+३० एवं तीर्थङ्कर बिना ११ इसप्रकार सर्वप्रकृति ७६ हैं। यहाँ उदय ७६ प्रकृति का एवं अनुदय ३० प्रकृति का है।
. वेदकसम्यक्त्व में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि--
उदययोग्य प्रकृति १०६, गुणस्थान ४
उदय
व्युच्छित्ति | उदय
अनुदय
गुणस्थान असंयत
१७
देशसंयत
विशेष २ (आहारकद्विक) १७ (गुणस्थानोक्त) ८ (पूर्वसन्दृष्टि में कथित) २५ (१९+८=२७-२ आहारकद्विक) व्यु.७६ अप्रमत्तगुणस्थान से अयोगीपर्यन्त व्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियाँ क्रम से ४+६+६+१+२+१६+३०+तीर्थकर-बिना
अप्रमत्त
_क्षायिकसम्यक्त्व में भी उदययोग्य १०६ प्रकृति हैं क्योंकि यहाँ आदि के तीन गुणस्थानों में व्युच्छिन्न होने वाली १५ तथा सम्यक्त्वप्रकृति, इन १६ का उदय नहीं है। गुणस्थान असंयत से अयोगीपर्यन्त ११ हैं। यहाँ असंयतगुणस्थान में व्युच्छित्ति गुणस्थानोक्त १७ तथा तिर्यञ्चायु, उद्योत और तिर्यञ्चगति इन २० प्रकृति की है, क्योंकि देशसंयतगुणस्थान में क्षायिक सम्यग्दर्शन मनुष्य के ही होता है, तिर्यञ्च के नहीं अत: तिर्यञ्चायु-उद्योत व तिर्यञ्चगति इन तीनप्रकृति का उदय पञ्चमगुणस्थान में नहीं होने से इनकी व्युच्छित्ति चतुर्थगुणस्थान में ही हो गई। असंयतगुणस्थान में उदयप्रकृति १०३, अनुदय आहारकद्विक और तीर्थकर इन तीन प्रकृति का। देशसंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति प्रत्याख्यानावरणकषाय ४ और नीचगोत्र, उदयप्रकृति ८३, अनुदयप्रकृति २३ । प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ५,