Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २८९
अवधिदर्शन में उदयोग्य प्रकृति अवधिज्ञानवत् ही १०६ हैं तथा उदयादिकी सर्वरचना अवधिज्ञान के समान ही है। अवधिदर्शन में गुणस्थान असंयत से क्षीणमोहपर्यन्त ९ हैं ।
केवलदर्शन में उदययोग्य प्रकृति ४२ हैं गुणस्थान २ हैं । उदयादिकी सर्वरचना केवलज्ञानवत् ही
जानना ।
॥ इति दर्शनमार्गणा ॥
अथ लेश्यामार्गणा
अथानन्तर लेश्यामार्गणा में उदयादि का कथन करते हैं
किveदुगे सगुणोघं, मिच्छे णिरयाणुवोच्छेदो ॥ ३२५ ॥ साणे सुरासुरगदिदेवतिरिक्खाणुवोच्छिदी एवं । काओदे अयदगुणे, णिरयतिरिक्खाणुवोच्छेदो ।। ३२६ ।।
अर्थ - श्यामार्गणा में कृष्ण - नीललेश्या में तीर्थङ्करादि तीनप्रकृतियों के बिना उदययोग्य प्रकृति ११९ हैं और सर्वकथन अपने-अपने गुणस्थानवत् है, किन्तु मिध्यात्व गुणस्थान में नरकगत्यानुपूर्वी की भी व्युच्छित्ति हो जाती है।
कृष्ण व नीललेश्यासहित सासादनगुणस्थान में गुणस्थानोक्त ९ तथा देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, देवायु, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी इन १३ प्रकृति की व्युच्छित्ति होती है । तथैव कापोतलेश्या में भी उदययोग्य ११९ प्रकृति हैं । कापोतलेश्या के असंयतगुणस्थान में नरक व तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी की भी व्युच्छित्ति होती
है ।
विशेषार्थ - श्यामार्गणा में कृष्ण व नीललेश्या में तीर्थङ्कर और आहारकद्विकके बिना उदययोग्य प्रकृति ११९ हैं। गुणस्थान मिथ्यात्वआदि चार हैं। अयदोत्ति छल्लेस्साओ इस वचन से असंयतगुणस्थानपर्यन्त छहलेश्या हैं । यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति गुणस्थानोक्त ५ प्रकृति और नरकगत्यानुपूर्वी इन ६ प्रकृति की है, क्योंकि सासादनगुणस्थानवाला मरणकर नरक नहीं जाता है। मिश्रगुणस्थान में आनुपूर्वी का उदय नहीं है तथा असंयतगुणस्थानवर्ती द्वितीयादि नरकपृथ्वी में उत्पन्न नहीं होते अतः कृष्ण-नीललेश्यारूप नरकगत्यानुपूर्वी की यहीं (मिध्यात्व में) व्युच्छित्ति कही है।