Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२८७
अथ दर्शनमार्गणा दर्शनमार्गणा के अन्तर्गत चक्षुदर्शन में उदययोग्य प्रकृतियाँ ११४, गुणस्थान मिथ्यात्व से क्षीणकषायपर्यन्त १२ हैं। मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व और अपर्याप्त की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ११०, अनुदयप्रकृति सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और आहारकद्विक ये चार। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति अनन्तानुबन्धी ४ कषाय और चतुरिन्द्रियजाति, उदयप्रकृति १०७, अनुदयप्रकृति ७। मिश्रगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १ सम्यग्मिथ्यात्व, उदयप्रकृति १००, अनुदयप्रकृति १४ । असंयतगुणस्थान में न्युच्छिन्नप्रकृति १७, उदयप्रकृति १०४, अनुदयप्रकृति १० । देशसंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ८, उदयप्रकृति ८७, अनुदयप्रकृति २७। प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ५, उदयप्रकृति ८१, अनुदयप्रकृति ३३ । अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ४, उदयप्रकृति ७६, अनुदयप्रकृति ३८1 अपूर्वकरणगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ६, उदयप्रकृति ७२, अनुदयप्रकृति ४२। अनिवृत्तिकरण में व्युच्छिन्नप्रकृति ६, उदयप्रकृति ६६, अनुदयप्रकृति ४८। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १, उदयप्रकृति ६०, अनुदयप्रकृति ५४ है। उपशान्तमोहगुणस्थान में ब्युच्छिन्नप्रकृति २, उदयप्रकृति ५९. अनुदयप्रकृति ५५ । क्षीणमोहगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १६, उदयप्रकृति ५७ और अनुदय प्रकृति ५७
चक्षुदर्शन में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्य प्रकृति ११४, गुणस्थान १२
उदय| व्युच्छित्ति | उदय
गुणस्थान मिथ्यात्व
सासादन
मिश्र
अनुदय
विशेष ४ (आहारकद्विक, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व) | २ (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
७ (४+२+१ नरकगत्यानुपूर्वी) ५ (अनन्तानुबन्धीकषाय४ और चतुरिन्द्रियजाति) १४ (७+५ = १२+ नरकबिना शेष ३
गत्यानुपूर्वी-१ सम्यग्मिध्यात्व) १० (१४+१-१५-४ गत्यानुपूर्वी और सम्यक्त्व) १७ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि के अनुसार) ८ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि के अनुसार)
असंयत
देशसंयत