Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२८६.-.मिथ्यात्वादि चार हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ५, उदयप्रकृति ११७, अनुदयप्रकृति गुणस्थानोक्त पाँच में से तीर्थङ्कर और आहारकद्विक बिना शेष दो। सासादनगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ९, उदयप्रकृति १११, अनुदय प्रकृति ८ । मिश्रगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १, उदयप्रकृति १००, अनुदयप्रकृति १९१ असंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १७, उदयप्रकृति १०४, अनुदयप्रकृति १५ हैं।
असंयम में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्य प्रकृति ११९, गुणस्थान ४
उदयगुणस्थान | व्युच्छित्ति | मिथ्यात्व
उदय
अनुदय
सासादन
१११
विशेष २ (सम्यग्मिथ्यात्व-सम्यक्त्व) ५ (मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त , साधारण) ८ (५+२-७+१ नरकगत्यानुपूर्वी) १९(८+९=१७+३ नरकबिना शेष
गत्यानुपूर्वी २०-१ सम्यग्मिथ्यात्व) १५(१९+१=२०-४ गत्यानुपूर्वी और सम्यक्त्व)
१७ (गाथा २६३ की सन्दृष्टि अनुसार)
मिश्र
असंयत
॥ इति संयममार्गणा ॥