Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२६७
अनिवृत्तिकरण ६ सूक्ष्मसाम्पराय १ उपशान्तमोह क्षीणमोह सयोगकेवली | ४२
६ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि के अनुसार) १ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि के अनुसार) २ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि के अनुसार) १६(गाथा २६४ की सन्दृष्टि के अनुसार) ६७(५२+१६८६८-१ तीर्थंकर)
औदारिकमिश्रकाययोग में उदयादि का कथन दो गाथाओं में करते हैं
तम्मिस्से पुण्णजुदा ण मिस्सथीणतियसरविहायदुगं। परघादचओ अयदे णादेजदुदुन्भगं ण संढिच्छी ॥३१२॥ . साणे तेसिं छेदो वामे चत्तारि चोदसा साणे।
चउदालं वोछेदो अयदे जोगिम्हि छत्तीसं ॥३१३।। जुम्म। अर्थ - पूर्वोक्त १०९ प्रकृतियों में एक अपर्याप्त प्रकृति के मिलने से तथा सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्यानगृद्धिआदि तीन, स्वरद्विक, प्रशस्त व अप्रशस्तविहायोगति, परघात, आतप, उद्योत और उच्छ्वास ये १२ प्रकृति कम करने से औदारिकमिश्रकाययोग में उदययोग्य ९८ प्रकृति हैं। असंयतगुणस्थान में अनादेय, अयशस्कीर्ति, दुर्भग, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका उदय नहीं है अत: इन प्रकृतियों की व्युच्छित्ति सासादनगुणस्थान में ही हो जाती है। मिथ्यात्वगुणस्थान में सूक्ष्मत्रय और मिथ्यात्व की, सासादनगुणस्थान में अनन्तानुबन्धीआदि १४, असंयतगुणस्थान में अप्रत्याख्यानआदि ४४ और सयोगकेवली के ३६ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है।
विशेषार्थ - औदारिकमिश्रकाययोग में उदययोग्य प्रकृति ९८; गुणस्थान मिथ्यात्व, सासादन, असंयत और सयोगकेवली ये चार हैं।
सामान्य से उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से आहारकद्विक, देवायु, वैक्रियिकपटक, मनुष्य व तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, नरकायु, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्यानगृद्धिआदि तीन निद्रा, सुस्वर-दुःस्वर, प्रशस्तअप्रशस्तविहायोगति, परघात, आतप, उद्योत और उच्छ्वास इन २४ प्रकृतियों को कम करने से औदारिकमिश्रकाययोग में उदययोग्य ९८ प्रकृति हैं, क्योंकि यहाँ देव-नरकतिसम्बन्धी तथा पर्याप्तकाल और विग्रहगतिसम्बन्धी प्रकृतियों का उदय नहीं है तथा आतपप्रकृति पर्याप्ति पूर्ण होने पर ही उदययोग्य है अत: उसका यहाँ उदय नहीं कहा है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छिन्न होनेवाली १४ प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं