Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गुणस्थान
मिथ्यात्व
सासादन
और
असंयत
सयोगकेवली
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २७३
कार्मणकाययोगसम्बन्धी उदयव्युच्छित्ति उदय अनुदय की सन्दृष्टिउदययोग्यप्रकृति ८९, गुणस्थान ४
उदय
व्युच्छित्ति उदय
a
८७
१०
५१
२५
८१
७५
२५
अनुदय
..२
८
१४
विशेष
२. ( तीर्थंकर, सम्यक्त्व ) ३ ( मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त)
८ (३+२=५+३ नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी
नरकायु)
१४ (१०+८ = १८-४ सम्यक्त्व, नरकद्रिक और नरकायु)
५१ (वैक्रियकद्विकबिना असंयत की १५+ उद्योतबिना देशसंयत की ७+ अप्रमत्त की १ सम्यक्त्व + अपूर्वकरण की ६ हास्यादि + अनिवृत्तिकरण की स्त्रीवेदबिना ५+ सूक्ष्मसाम्पराय की १ लोभ + क्षीणमोहकी १६ ) ६४ (५१ + १४=६५- १ तीर्थंकर)
६४
॥ इति योगमार्गणा ।
अथ वेदमार्गणा
अब वेदमार्गणासम्बन्धी उदयादि का कथन करते हैं
मूलोघं पुंवेदे, थावरचउणिरथजुगलतित्थयरं । इगिविगलं धीसंद, तावं णिरयाउगं णत्थि ॥ ३२० ॥
अर्थ - पुरुषवेद में सामान्य से गुणस्थानोक्त १२२ प्रकृतियों में से स्थावरादि चार, नरकद्विक, तीर्थकर, एकेन्द्रिय, विकलत्रय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, आतप और नरकायु ये १५ प्रकृतियाँ उदययोग्य नहीं हैं।
विशेषार्थ - पुरुषवेद में उदययोग्य १०७ प्रकृति, गुणस्थान आदि के ९ हैं । यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान