Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२७८
अथ कषायमार्गणा अब कषायमार्गणा में उदयादि का कथन करते हैं....................
तित्थयरमाणमायालोहचउक्कूणमोघमिह कोहे।
अणरहिदे णिगिविगलं तावऽणकोहाणुथावरचउक्कं ।।३२२॥ अर्थ - कषायमार्गणा में क्रोधकषाय में सामान्य से गुणस्थानोक्त १२२ प्रकृतियों में से चारप्रकार के क्रोध को छोड़कर शेष मान-माया व लोभचतुष्क सम्बन्धी १२ कषाय और तीर्थकर इसप्रकार १३ प्रकृति बिना १०९ प्रकृति उदययोग्य हैं तथा अनन्तानुबन्धीरहित मिथ्यादृष्टि के (अर्थात् अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना कर जो मिथ्यात्व में आया है) शेष तीन प्रकार के क्रोध में एकेन्द्रिय,विकलत्रय,आतप,अनन्तानुबन्धीक्रोध, ४ आनुपूर्वी, स्थावरादि चार इन १४ प्रकृतियों का उदय नहीं है तथा सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्व व आहारकद्विक का भी उदय नहीं है।
“एवं माणादितिए" गाथा ३२३ के इन वचनों के अनुसार मानादि तीन कषायों में क्रोधकषायवत् ही कथन जानना । स्व-स्व कषाय के अतिरिक्त १२ कषाय एवं तीर्थक्करप्रकृति इन १३ के बिना उदययोग्य १०९ प्रकृति हैं।
विशेषार्थ - क्रोधकषाय में उदययोग्य प्रकृतियाँ १०९ हैं और गुणस्थान ९ हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति गुणस्थानोक्त ५, उदयप्रकृति १०५, अनुदयप्रकृति सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और आहारकद्धिक। सासादनगुणस्थान में अनन्तानुबन्धीक्रोध, एकेन्द्रिय, स्थावर, विकलत्रयकी तीन इस प्रकार ६ प्रकृति की व्युच्छित्ति, उदय ९९ प्रकृति का, नरकगत्यानुपूर्वीसहित अनुदयरूप १० प्रकृति । मिश्रगुणस्थान में व्युच्छित्ति १ मिश्रप्रकृति की, उदय ९१ प्रकृति का तथा नरकगत्यानुपूर्वीबिना शेष तीनआनुपूर्वीका उदय नहीं होने से अनुदयप्रकृति १८ । असंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति अप्रत्याख्यानक्रोध, वैक्रियिकषट्क, मनुष्य व तिर्यञ्चआनुपूर्वी,देवायु व नरकायु, दुर्भग, अनादेय, अयशस्कीर्ति ये १४ । उदयप्रकृति ९५, सम्यक्त्व तथा चारों आनुपूर्वी का उदय होने से अनुदयप्रकृति १४। देशसंयत में प्रत्याख्यानक्रोध, तिर्यञ्चायु, उद्योत, नीचगोत्र, तिर्यञ्चगति इन पाँचप्रकृति की व्युच्छित्ति, उदय ८१ प्रकृति का और अनुदयप्रकृति २८ हैं। प्रमत्तसंयत में आहारकद्विक, स्त्यानगृद्धिआदि तीननिद्रा इन पाँच की व्युच्छित्ति, उदय ७८ प्रकृति का, आहारकद्विक का उदय होने से अनुदय ३१ प्रकृति का | अप्रमत्तगुणस्थान में सम्यक्त्वप्रकृति, अन्तिम तीनसंहनन इन चारप्रकृति की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ७३, अनुदयप्रकृति ३६ | अपूर्वकरणगुणस्थान में हास्यादि छह नोकषाय की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ६९, अनुदयप्रकृति ४० । अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के प्रथम भाग में व्युच्छित्ति तीन वेद की, दूसरे भाग में सञ्चलनक्रोध तथा सूक्ष्मसाम्परायसम्बन्धी शून्य, उपशान्तकषाय सम्बन्धी