Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २८१
विशेषार्थ - ज्ञानमार्गणा के अन्तर्गत कुमति - कुश्रुतज्ञान में मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, नरकगत्यानुपूर्वी की, उदयप्रकृति ११७, अनुदय का अभाव है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति रूप प्रकृति गुणस्थानोक्त ९, उदयप्रकृति १११ और अनुदयप्रकृति ६ हैं ।
गुणस्थान
मिथ्यात्व
सासादन
कुमति - कुश्रुतज्ञान में उदयव्युच्छित्ति- - उदय और अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टिउदयोग्य प्रकृति ११७, गुणस्थान २
उदय
व्युच्छित्ति
६
सासादन
उदय
गुणस्थान व्युच्छित्ति
मिथ्यात्व
१
उदय
११:७
९
१११
€
९ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार )
विभङ्ग ( कुअवधि ) ज्ञान में उदययोग्य १०४ प्रकृति तथा गुणस्थान दो ही हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १ मिध्यात्व, उदयप्रकृति १०४, अनुदय का अभाव है । सासादनगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति अनन्तानुबन्धी ४ कषाय, उदयप्रकृति १०३ और अनुदय प्रकृति १
है ।
X
कुअवधिज्ञान में उदयव्युच्छित्ति- - उदय - अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टिउदययोग्य प्रकृति १०४, गुणस्थान २
उदय
अनुदय
०
१०४
१०३
अनुदय
( मिथ्यात्व )
(अनन्तानुबन्धी कषाय )
सण्णाणपंचयादी, दंसणमग्गणपदोत्ति सगुणोघं । मणपज्जवपरिहारे, णवरि पण संढित्थि हारदुगं ॥ ३२४ ॥ चक्खुम्मि ण साहारणताविगिबितिजाइ थावरं सुहुमं ।
विशेष
६ ( मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण और नरकगत्यानुपूर्वी)
०
५
१
विशेष
४
अर्थ- पाँचज्ञान से दर्शनमार्गणा पर्यन्त अपने-अपने गुणस्थानवत् रचना है, किन्तु मन:पर्ययज्ञान और परिहारविशुद्धिसंयम में विशेषता यह है कि नपुंसकवेद, स्त्रीवेद और आहारकद्विक ये चारप्रकृति