Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २८२
उदययोग्य नहीं हैं तथा चक्षुदर्शन में साधारण, आतप, एकेन्द्रिय-द्वीन्द्रिय व त्रीन्द्रियजाति, स्थावर, सूक्ष्म और तीर्थङ्कर ये आठप्रकृति उदययोग्य नहीं हैं अतः इन बिना ११४ प्रकृतियों का उदय पाया जाता
है।
विशेषार्थ - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में गुणस्थान असंयत से क्षीणकषायपर्यन्त ९ होते हैं, उदययोग्य प्रकृति १०६ हैं । यहाँ सामान्य से गुणस्थानोक्त १२२ प्रकृतिमें से प्रथम, द्वितीय और तृतीयगुणस्थानसम्बन्धी व्युच्छिन्नप्रकृतियाँ १५ तथा तीर्थकर इन १६ प्रकृतियों का उदय नहीं पाया जाता है । उदयव्युच्छित्ति, उदय और अनुदय का कथन इसप्रकार है
असंयतगुणस्थान से क्षीणकषायपर्यन्त ९ गुणस्थानों में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति क्रम से १७-८५-४-६-६-१-२ और १६ जानना तथा उदय यथाक्रम १०४-८७-८१-७६-७२-६६-६०-५९ व ५७ प्रकृतियों का है। अनुदयगुणस्थानों में क्रम से २-१९-२५-३०-३४-४०-४६-४७ और ४९ प्रकृतियों का जानना ।
गुणस्थान
असंयत
देशसंयत
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मति श्रुत-अवधिज्ञान में उदयव्युच्छित्ति उदय और अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि--- उदययोग्य प्रकृति १०६, गुणस्थान ९
प्रमत्त
उदय
व्युच्छित्ति
१७
८
५
अप्रमत्त
अपूर्वकरण ६
अनिवृत्तिकरण ६
४
सूक्ष्मसाम्पराय १
उपशान्तमोह
क्षीणमोह
१६
उदय अनुदय
१०४
२
८७
८१
७६
७२
६६
६०
५१
५७
१९
२५
३०
३४
૪૨
४६
४७
४९
विशेष
२ (आहारकद्विक) १७ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार )
८ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार )
२५६१९+८ = २७- २ आहारकद्विक) ५ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार )
४ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार ) ६ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार ) ६ ( गाधा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार ) १ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार )
२ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार )
१६ ( गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार )