Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २७१
वैंक्रियकमिश्रकाययोग में उदयव्युच्छित्ति - उदय - अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टिउदययोग्यप्रकृति ७९, गुणस्थान ३
उदय
गुणस्थान व्युच्छित्ति
मिथ्यात्व १
सासादन
५
असंयत
उदय अनुदय
१
७८
६९
विशेष
अनुदय १ ( सम्यक्त्व) व्यु. १ ( मिथ्यात्व ) १० (हुण्डकसंस्थान, नपुंसकवेद, दुभंग, अनादेय, अयशस्कीर्ति, नरकगति, नरकायु, नीचगोत्र, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व )
५ ( अनन्तानुबन्धी की ४ कषाय और स्त्रीवेद) ६ (१०+५=१५-९ उपर्युक्त हुण्डक - संस्थानादि ८ और सम्यक्त्व)
१३ ( गाथा ३१४ की सन्दृष्टि अनुसार )
आगे कार्मणकाययोग में उदयादि का कथन दो गाथाओं से करते हैंओघं कम्मे सरगदिपत्तेयाहारुरालदुग मिस्सं । उवघादपणविगुव्वदुधीणतिसंठाणसंहदी णत्थि ।। ३१८ ।।
१३
७३
१०
६
साणे श्रीवेदछिदी, णिरयदुणिस्याउगं ण तियदसयं । इगिवण्णं पणवीस, मिच्छादिसु चउसु वोच्छेदो ॥३१९॥ जुम्मं ॥
अर्थ - कार्मणकाययोग में उदययोग्य प्रकृति ८९ हैं। गुणस्थानोक्त सामान्य से १२२ प्रकृतियों में से स्वरद्विक, प्रशस्त व अप्रशस्तविहायोगति, प्रत्येक, साधारण, आहारकद्विक, औदारिकद्विक, सम्यग्मिथ्यात्व, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, वैक्रियिकद्विक, स्त्यानगृद्धित्रिक, ६ संस्थान, ६ संहनन इस प्रकार इन ३३ प्रकृतियों के बिना उदययोग्य ८९ प्रकृति हैं । उसमें भी सासादनगुणस्थान स्त्रीवेद की व्युच्छित्ति होती है और नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी व नरकायु इन तीन का उदय नहीं होता तथा मिध्यात्वगुणस्थान में ३, सासादनगुणस्थान में १०, असंयतगुणस्थान में ५१ और सयोगकेवली के २५ प्रकृति की उदयव्युच्छित्ति होती है।
विशेषार्थ - कार्मणकाययोग में उदययोग्य प्रकृतियाँ ८९ हैं।
शंका - अनादिसंसार में विग्रहगति और अविग्रहगति में मिथ्यात्व से सयोगी पर्यन्त सर्व गुणस्थानों में कार्मणशरीर का निरन्तर उदय है । विग्रहगती कर्मयोग: इस सूत्र द्वारा विग्रहगति में ही कार्मणकाययोग क्यों कहा?