Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२६८
अनन्तानुबन्धी की चार कषाय, एकेन्द्रिय, स्थावर, विकलत्रय, अनादेय, अयशस्कीर्ति, दुर्भग, नपुंसकवेद और स्त्रीवेद । असंयतगुणस्थान में अप्रत्याख्यानकषाय चार तथा देशसंयत की उद्योत बिना शेष ७, प्रमत्त की आहारकद्विक-स्त्यानगृद्धित्रिकबिना शून्य, अप्रमत्त की चार, अपूर्वकरणकी ६, अनिवृत्तिकरण की स्त्री व नपुंसकवेद बिना ४, सूक्ष्मसाम्पराय की १ सूक्ष्मलोभ, उपशान्तकषाय की वज्रनाराच व नाराचसंहनन, क्षीणकषाय की १६ इस प्रकार ४+७+o+४+६+४+१+२+१६:४४ प्रकृतियाँ असंयतगुणस्थान में ही व्युच्छिन्न होती हैं, क्योंकि देशसंयत से क्षीणकषायगुणस्थान पर्यन्त
औदारिकमिश्रकाययोग नहीं होता है। सयोगीगुणस्थान में ३६ प्रकृति की व्युच्छित्ति है, क्योंकि कपाटसमुद्घात के समय इनके औदारिकमिश्रकाययोग में सुस्वर, दुःस्वर, प्रशस्तअप्रशस्तविहायोगति, परघात और उच्छ्वास का उदय नहीं होता।
इस प्रकार यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति ४ प्रकृति की, उदय ९६ प्रकृति का तथा अनुदय सम्यक्त्व और तीर्थंकर प्रकृति का है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १४, उदयप्रकृति ९२, अनुदयप्रकृति ६ । असंयतगुणस्थान में व्युच्छित्ति ४४ प्रकृति की, उदय सम्यक्त्वसहित ७९ प्रकृति का, अनुदय १९ प्रकृति का। सयोगकेवली के व्युच्छिन्नप्रकृति ३६, उदयप्रकृति तीर्थकरसहित ३६, अनुदयप्रकृति ६२ हैं। औदारिकमिश्रकाययोग में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्यप्रकृति ९८, गुणस्थान ४
उदय
उदय
अनुदय
गुणस्थान व्युच्छित्ति मिथ्यात्व
सासादन
असंयत
विशेष २ (तीर्थकर, सम्यक्त्व) ४ (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, ___ अपर्याप्त, साधारण) १४ (अनन्तानुबन्धी की चारकषाय, एकेन्द्रिय,
विकलत्रय, स्थावर, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद,
दुर्भग, अनादेय, अयशस्कीर्ति) १९(१४+६-२०-१ सम्यक्त्व) ४४(अप्रत्याख्यानकषाय ४, प्रत्याख्यानकषाय ४, लियञ्चायु, तिर्यञ्चगति, नीचगोत्र, सम्यक्त्व, हास्यादि ६, अन्त के तीन संहनन, पुरुषवेद, सञ्चलनकषाय ४, वज्रनाराच और नाराचसंहनन तथा गाथा २६४ की
सन्दृष्टिवत् क्षीणकषायगुणस्थान की १६। । ६२ (४४+१९-६३-१ तीर्थकर)
सयोगकेवली | ३६
। ३६
।
६२