Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२६५ अनुभयवचनयोग में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्य प्रकृति १०९, गुणस्थान १३
सासादन
मिश्र
प्रमत्त
उदयगुणस्थान व्युच्छिति | उदय
अनुदय
विशेष मिथ्यात्व
१०७
५ (गाथा २६४ की सन्दृष्टिवत्) १ (गाथा २६४ की सन्दृष्टिवत्) ७ (अनन्तानुबन्धीकषाय ४, विकलत्रय) १२(७+६=१३-१ सम्यग्मिथ्यात्व)
१ (सम्यग्मिथ्यात्व) अर्सयत
१२(१२+१=१३-सम्यक्त्व) १३ (गाथा
३१० की सन्दृष्टिवत्) देशसंयत
८ (गाथा २६४ के अनुसार) ३१(२५+८=३३-२ आहारकद्विक)
५ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि के अनुसार) अप्रमत्त
४ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) अपूर्वकरण ।
| ६ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) अनिवृत्तिकरण ६
६ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) सूक्ष्मसाम्पराय १
१ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) उपशान्तमोह
२ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) क्षीणभोह १६
५५ | १६ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) सयोगकेवली ४२
७० ७० (५५+५६-७५-१ तीर्थकर) औदारिककाययोग में उदययोग्य १०९ प्रकृति, गुणस्थान १३ हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति गुणस्थानोक्त ५ प्रकृतियों में से अपर्याप्तबिना ४ तथा एकेन्द्रिय, स्थावर, विकलत्रय इस प्रकार इन ९ प्रकृति की, उदयप्रकृति १०६, अनुदयप्रकृति सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वमोहनीय और तीर्थङ्कर ये तीन हैं। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति रूप प्रकृति अनन्तानुबन्धी कषाय ४, उदय ९७ प्रकृति का, अनुदय १२ प्रकृति का है। मिश्रगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १ (सम्यग्मिध्यात्व), उदयप्रकृति ९४,