Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२६४
देशसंयत
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्त
अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण| ६ सूक्ष्मसाम्पराय | १ उपशान्तमोह । २ क्षीणमोह सयोगकेवली | ४२
|... २..! (या : २६ भी मदृष्टि अनुर: २८ । २८(२२+८=३० -२ आहारकद्विक) ५
(गाथा २६४ के अनुसार) | ४ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) | ६ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) ६ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) १ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) २ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) १६ (गाथा २६४ की सन्दृष्टि अनुसार) . ६७(५२+१६-६८-१ तीर्थंकर) नोट : यह १३वा गुणस्थान सत्य-अनुभयमनो
योग व सत्य वचनयोगकी अपेक्षा से है।
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आगे अनुभयवचनयोग और औदारिककाययोग में उदयादि कहते हैं
अणुभयवचि वियलजुदा, ओघमुराले ण हारदेवाऊ ।
वेगुव्वछक्कणरतिरियाणु अपज्जत्तणिरयाऊ ||३११॥ अर्थ - अनुभयवचनयोग में पूर्वोक्त १०९ प्रकृति में से विकलत्रय की तीन मिलाने से उदययोग ११२ प्रकृति हैं तथा औदारिककाययोग में गुणस्थानोक्त १२२ प्रकृति में से आहारकद्विक, देवायु, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकअङ्गोपाङ्ग, देव-नरकगति, देव-नरकगत्यानुपूर्वी, मनुष्य-तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अपर्याप्त और नरकायु कम करने से १०९ प्रकृति उदययोग्य हैं।
विशेषार्थ - अनुभयवचनयोग में उदययोग्य ११२ प्रकृति तथा गुणस्थान १३ हैं। यहाँ मिथ्यात्व से सयोगीगुणस्थानपर्यन्त क्रमसे १ मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी और विकलत्रय इस प्रकार ७,१-१३८-५-४-६-६-१-२-१६ और ४२ प्रकृति व्युछित्ति रूप जानना। उसीप्रकार १०७-१०६-१००१००-८७-८१-७६-७२-६६-६०-५९-५७ और ४२ प्रकृति गुणस्थान क्रम से उदययोग्य हैं एवं यथाक्रम से ५-६-१२-१२-२५-३१-३६-४०-४६-५२-५३-५५ और ७० प्रकृति गुणस्थानों में अनुदयरूप जानना।