Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२४६ का है। सासादनगुणस्थान में अनन्तानुबन्धीकषाय ४, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी इन ५ प्रकृति की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ९३, अनुदयप्रकृति ३। मिश्रगुणस्थान में सम्यग्मिथ्यात्व की व्युच्छित्ति, उदयरूप प्रकृति ८९,, अनुदय ७ प्रकृति का है। अविरतसम्यग्दृष्टि मरण कर तिर्यञ्चिनी अर्थात् स्त्रियों में उत्पन्न नहीं होता अतः असंयतगुणस्थान में पूर्वोक्त ८ में से तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी के बिना ७ प्रकृति की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ८९ हैं, क्योंकि यहाँ सम्यक्त्वप्रकृति का उदय पाया जाता है, अनुदयप्रकृति ७ हैं। देशसंयतगुणस्थान में गुणस्थानोक्त ८ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति, उदय ८२ प्रकृति का तथा अनुदय १४ प्रकृति का है। .. तिर्यञ्चयोनिनो सम्बन्धी उदयव्युच्छिोत्ते-उदय-अनुदय की सन्दृष्टि
उदययोग्यप्रकृति ९६, गुणस्थान ५
उदय
उदय
गुणस्थान व्युच्छित्ति अनुदय
विशेष मिथ्यात्व
पूर्वसन्दृष्टि अनुसार सासादन
५ (अनन्तानुबन्धी ४+ तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी) मिश्र
७ (५+३-१ सम्यग्मिथ्यात्व) असंयत
अनु. ७ (७+१-सम्यक्त्वप्रकृति)
व्यु. ७ (पूर्वोक्त ८-१ तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी) देशसंयत | ८२ । १४ । व्यु. ८ (पूर्वोक्त) अथानन्तर मनुष्यगति में उदयादि का कथन करते हैं
मणुवे ओघो थावरतिरियादावदुगएयवियलिंदी।
साहरणिदराउतियं, वेगुब्वियछक्क परिहीणो॥२९८॥ अर्थ - मनुष्य चार प्रकार के हैं, उनमें से सामान्य मनुष्य के गुणस्थानोक्त उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से स्थावर, सूक्ष्म, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, साधारण, नरक-तिर्यञ्च व देवायु, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकअङ्गोपाङ्ग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, इन २० प्रकृतियों को घटाने से उदय योग्य १०२ प्रकृतियाँ
मिच्छमपुण्णं छेदो, अणमिस्सं मिच्छगादितिसु अयदे। बिदियकसायणराणू, दुब्भगऽणादेज्ज अजसयं ॥२९९॥