Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२६०
जलकाय में उदययोग्य ७८ प्रकृतियाँ हैं। गुणस्थान २ हैं। मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति पूर्वोक्त १० में से आतपबिना ९, उदयप्रकृति ७८, अनुदय का अभाव है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ६, अनुदयप्रकृति ९ तथा उदयप्रकृति ६९।
जलकाय में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्यप्रकृति ७८, गुणस्थान २। उदयगुणस्थान | व्युच्छित्ति | उदय 1 अनुदय
विशेष मिथ्यात्व | ९ ७८ ० ९ (मिथ्यात्व, उद्योत, सूक्ष्म, अपर्याप्त,
स्त्यानगृद्धिआदि तीननिद्रा,उच्छ्वास, परघात)। मामी ६३ १ ६ (अनन्तानुबन्धीकी चारकषाय, एकेन्द्रिय
और स्थावर) तेजकाय तथा वायुकाय में उदययोग्य ७७ प्रकृति तथा गुणस्थान एक मिथ्यात्व ही है।
वनस्पतिकाय में उदययोग्यप्रकृति ७९ तथा गुणस्थान मिथ्यात्व और सासादन ये दो हैं। मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृतियाँ मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, स्त्यानगृद्धिआदि तीननिद्रा,परम्घात, उच्छ्वास और उद्योत ये १० हैं, उदयरूप प्रकृति ७९, अनुदय का अभाव है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ६, उदयप्रकृति ६९, अनुदयप्रकृति १० हैं। वनस्पतिकाय में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्य प्रकृति ७९, गुणस्थान २ उदयगुणस्थान | व्युच्छित्ति ।
विशेष मिथ्यात्व
१०(मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण,
स्त्यानगृद्धिआदि तीननिद्रा, उच्छ्वास, परघात,
उद्योत) ६ (अनन्तानुबन्धीकषाय ४, एकेन्द्रिय
और स्थावर) अथानन्तर त्रसकाय में उदयादि का कथन करते हैं
ओघं तसे ण थावरदुगसाहरणेयतावमथ ओघं। अर्थ - त्रसकाय में उदयादि का कथन गुणस्थानवत् जानना चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है ।
उदय
अनुदय
७९
सासादन