Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२५६ अथ इन्द्रियमार्गणा
अथानन्तर इन्द्रियमार्गणासम्बन्धी उदयादि को तीन गाथाओं में कहते हैं
तिरियअपुण्णं वेगे, परघादचउक्कपुण्णसाहरणं । एइंदियजसथीणतिथावरजुगलं च मिलिदव्वं ॥३०६ ।।
रिणमंगोवंगतसं, संहदिपंचक्खमेवमिह वियले । अवणिय थावरजुगलं, साहरणेयक्खमादावं ॥३०७॥ खिव तसदुग्गदिदुस्सरमंगोवंगं सजादिसेवटं। ओघं सयले साहरणिगिविगलादावथावरदुगूणं ।।३०८॥विसेसयं॥
१. अर्थ - पञ्चेन्द्रियन्कुञ्ध्यापटपलतियङ्गसम्बन्धी ७१ प्रकृतियों में परघात, आतप, उद्योत, | उच्छ्वास, पर्याप्त, साधारण,एकेन्द्रियजाति, यशस्कीर्ति. स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्थावर
और सूक्ष्म इन १३ प्रकृतियों को मिलाने से तथा अङ्गोपाङ्ग, त्रस, सुपाटिकासंहनन और पञ्चेन्द्रियजाति इन चार प्रकृतियों को कम करने पर एकेन्द्रिय के ८० प्रकृतियाँ उदययोग्य हैं।
विकलत्रय में एकेन्द्रियसम्बन्धी उपर्युक्त ८० प्रकृति में से स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, एकेन्द्रिय और आतपप्रकृति घटाकर एवं त्रस, अप्रशस्तविहायोगति, दुःस्वर, अङ्गोपाङ्ग, सृपाटिका- संहनन तथा ! द्वीन्द्रियादि अपनी-अपनी जाति मिलाने से उदययोग्य ८१ प्रकृतियाँ हैं। सकलेन्द्रिय में गुणस्थानोक्त | १२२ प्रकृति में से साधारण,एकेन्द्रिय, विकलत्रय (तीन), आतप, स्थावर और सूक्ष्म ये ८ प्रकृति कम करके शेष ११४ प्रकृतियाँ उदययोग्य जानना ।
विशेषार्थ - मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण तथा सासादनगुणस्थान में जिनका | उदय नहीं पाया जाता ऐसी स्त्यानगृद्धिआदि तीननिद्रा, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, क्योंकि इन ६ प्रकृति का उदय एकेन्द्रियनिर्वृत्यपर्याप्तावस्था में नहीं होता है। अत: उपर्युक्त सर्व ११ प्रकृतियों की उदयव्युच्छित्ति एकेन्द्रियमार्गणासम्बन्धी मिथ्यात्वगुणस्थान में होती है और उदय ८० प्रकृति का, अनुदय का यहां अभाव है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति अनन्तानुबन्धीकी चारकषाय, एकेन्द्रिय और स्थावर की होती है। यहाँ उदय ६९ प्रकृति का एवं अनुदय ११ प्रकृति का है।