Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२५५ विशेषार्थ - भवनत्रिक में और कल्पवासिनी देवांगनाओं में सम्यग्दृष्टिजीव उत्पन्न नहीं होते हैं अतः इनके असंयतगुणस्थान में देवगत्यानुपूर्वी का उदय नहीं है। विशेष यह है कि सासादन और असंयतगुणस्थान में क्रमश: ५ एवं ८ प्रकृत्तिकी व्युच्छित्ति जानना, शेष कथन सुगम है। तद्यथामिथ्यात्वादि चारगुणस्थानों में क्रमशः १-५-१-८ प्रकृति की व्युच्छित्ति, '७४-७३-६९-६९ प्रकृति का उदय एवं २-३-७-७ प्रकृति का अनुदय है।
भवनत्रिकदेव-देवी एवं कल्पवासिनीदेवियों में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदय सम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्यप्रकृति ७६, गुणस्थान ४ ।
उदयगुणस्थान । व्युच्छित्ति
उदय
अनुदय
मिथ्यात्व
सासादन मिश्र
विशेष (सामान्यदेवसम्बन्धी सन्दृष्टिवत्) ५ (अनन्तानुबन्धीकषाय ४+१ देवगत्यानुपूर्वी) ७ (५+३-१ सम्यग्मिथ्यात्व) १ (सम्यग्मिथ्यात्व) ७ (७+१-१ सम्यक्त्व )
असंयत
॥ इति गतिमार्गणा॥