Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२५४
सामान्यदेवों के उपयज्युच्छिी -उदय-अनुदयसम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्यप्रकृति ७७, गुणस्थान ४
उदयव्युच्छित्ति नितिउदय | अनुदय |
गुणस्थान मिथ्यात्व सासादन मिश्र असंयत
विशेष १ (मिथ्यात्व) २ (सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व) । ४ (अनन्तानुबन्धीकषाय) . ७ (४+३+१ देवगत्यानुपूर्वी, १ सम्यग्मिथ्यात्व) ९ (अप्रत्याख्यानकषाय ४, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियकशरीर, वैक्रियकअंगोपांग और
देवायु)
सौधर्म स्वर्ग से नवग्रैवेयकपर्यन्त देवों में स्त्रीवेद बिना उदययोग्य ७६ प्रकृति हैं, गुणस्थान आदि । के चार हैं। यहाँ मिथ्यात्वादि गुणस्थानों में उदय से व्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियाँ क्रमसे १-४-१-९॥ उदयरूप प्रकृतियाँ क्रम से ७४-७३-६९-७०। अनुदय रूप प्रकृति २-३-७-६ क्रम से जानना। सौधर्मस्वर्ग से नवग्रैवेयकपर्यन्त देवों में उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदय सम्बन्धी सन्दृष्टि
उदययोग्य प्रकृति ७६, गुणस्थान ४
उदयव्युच्छित्ति
उदय
अनुदय
गुणस्थान मिथ्यात्व सासादन मिश्र
કરે
विशेष (सामान्यदेवसम्बन्धी सन्दृष्टिवत्) (सामान्यदेवसम्बन्धी सन्दृष्टिवत्) (सामान्यदेवसम्बन्धी सन्दृष्टिवत्) (सामान्यदेवसम्बन्धी सन्दृष्टिवत्)
असयत
अब अनुदिशादिविमानसम्बन्धी कथन करते हैं
अविरदठाणं एक्कं , अंणुद्दिसादिसु सुरोधमेव हवे।
भवणतिकपित्थीणं, असंजदे णत्थि देवाणु ॥३०५॥ अर्थ - नवअनुदिश, पंचअनुत्तर इन १४ विमानों में एक असंयतगुणस्थान ही होता है अतः सामान्य से देवों में असंयतगुणस्थान में उदयरूप जो ७० प्रकृतियाँ कही वे ही यहाँ भी उदयरूप जानना। भवनत्रिकदेव-देवियों में और कल्पवासिनी देवांगनाओं में सामान्यदेववत् उदययोग्य ७७ में से देवों में स्त्रीवेद और देवांगनाओं में पुरुषवेदबिना ७६ प्रकृति उदययोग्य हैं।