Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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अनिवृत्तिकरण | ५
१
सूक्ष्मसाम्पराय उपशान्तमोह २
क्षीणमोह
१६
सयोगकेवली
३०
अयोगकेवली
१२
६५
६०
५९
५७
४२
१२
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २५०
३५
४०
४१
४३
५८
८८
५ ( पुरुष व नपुंसकवेद, सज्वलनक्रोध - मान-माया)।
१ ( पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार )
२ ( पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार )
१६ ( पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार )
५८ (४३+१६ - १ तीर्थंकर) ३० ( पूर्व - सन्दृष्टि के अनुसार)
१२ ( पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार )
मणुसिणिएत्थीसहिदा तित्थयराहारपुरिससंतॄणा । पुण्णिदरेव अपुण्णे सगाणुगदिआउगं णेयं ॥ ३०१ ॥
अर्थ - पर्याप्त मनुष्यसम्बन्धी उदययोग्य १०० प्रकृतियों में से तीर्थङ्कर, आहारकद्विक, पुरुषवेद और नपुंसकवेद ये ५ प्रकृति कम करके स्त्रीवेद मिलाने पर मनुष्यनी के उदययोग्य ९६ प्रकृतियाँ हैं तथा लब्ध्यपर्याप्तकमनुष्य के लब्ध्यपर्याप्तकतिर्यञ्चवत् ७१ प्रकृतियाँ उदययोग्य हैं ( किन्तु तिर्यञ्च आनुपूर्वी, तिर्यख गति और तिर्यञ्चायु ये तिर्यञ्चसम्बन्धी तीनप्रकृतियाँ छोड़कर उनके स्थान पर मनुष्यसम्बन्धी मनुष्यगतिं मनुष्यगत्यानुपूर्वी - मनुष्यायु जानना ) गुणस्थान एक मिथ्यात्व है।
विशेषार्थ - मनुष्यनी के उदययोग्य प्रकृति ९६ तथा गुणस्थान १४ हैं । यहाँ मिथ्यात्व गुणस्थान में उदयव्युच्छित्ति १ मिथ्यात्व की, उदयप्रकृति ९४, अनुदयप्रकृति सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति । सासादनगुणस्थान में अनन्तानुबन्धी चारकषाय और मनुष्यगत्यानुपूर्वी की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ९३, अनुदयप्रकृति ३ | मिश्रगुणस्थान में सम्यग्मिथ्यात्व की व्युच्छित्ति, उदय ८९ प्रकृति का, अनुदय ७ प्रकृति का । असंयत गुणस्थान में अप्रत्याख्यानकषाय ४, दुभंग, अनादेय, अयशस्कीर्ति इन ७ प्रकृति की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ८९, अनुदय ७ प्रकृति का । देशसंयतगुणस्थान में प्रत्याख्यानकषाय चार और नीचगोत्र इन ५ प्रकृति की व्युच्छित्ति, उदयप्रकृति ८२, अनुदयप्रकृति १४ । प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छित्ति स्त्यानगृद्धि और तीननिद्रा की, उदय ७७ प्रकृति का तथा अनुदय १९ प्रकृति का है। अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ४, उदयप्रकृति ७४, अनुदयप्रकृति २२ । अपूर्वकरणगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ६, उदयप्रकृति ७० और अनुदयप्रकृति २६ हैं । अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के भागों में व्युच्छिन्नप्रकृति क्रम से स्त्रीवेद, सञ्ज्वलनक्रोध मान-माया ये चार हैं । उदयप्रकृति ६४, अनुदयप्रकृति ३२ । सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में सूक्ष्मलोभ की व्युच्छित्ति, ६० प्रकृति का उदय एवं ३६ प्रकृति का अनुदय है । उपशान्तमोहगुणस्थान में वज्रनाराच व नाराचसंहनन की व्युच्छित्ति, उदयरूप प्रकृति ५९, अनुदयप्रकृति ३७ । क्षीणमोहगुणस्थान में व्युच्छित्ति १६ प्रकृति की, उदय ५७ प्रकृति का, अनुदय ३९ प्रकृति का ।