Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२४२
है ऐसा सम्यग्दृष्टिजीव वंशादि छह पृथ्वियों में जन्म नहीं लेता है। अत: इस (नरकगत्यानुपूर्वी) की व्युच्छित्ति मिथ्यात्वगुणस्थान में ही होने से मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति२, उदयप्रकृति ७४, अनुदध सभ्यकंच, सन्याम्मथ्यात्व इन दो का है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति ४ प्रकृति की, उदय ७२ प्रकृतिका, अनुदय ४ प्रकृति का। मिश्रगुणस्थान में सम्यग्मिध्यात्व का उदय होने से अनुदयप्रकृति ७, उदयप्रकृति ६९, व्युच्छिन्नप्रकृति १। असंयतगुणस्थान में सम्यक्त्वप्रकृति के मिलने से अनुदयप्रकृति ७, उदयप्रकृति ६९ और व्युच्छिन्नप्रकृति ११ हैं। वंशादि ६ पृथ्वीसम्बन्धी उदयव्युच्छित्ति-उदय-अनुदय की सन्दृष्टि
उदययोग्य प्रकृति ७६, गुणस्थान ४ उदयगुणस्थान | व्युच्छित्ति
अनुदय विशेष मिथ्यात्व
व्यु. २ (मिथ्यात्व और नरकगत्यानुपूर्वी) सासादन
पूर्व सन्दृष्टि अनुसार मिश्र
पूर्व सन्दृष्टि अनुसार असंयत
७ (७+१-१ सम्यक्त्व)
११ (पूर्वसन्दृष्टि कथित १२-१ नरकगत्यानुपूर्वी) अब तिर्यञ्चगति में उदयादि का कथन करते हैं
तिरिये ओघो सुरणरणिरयाऊ उच्च मणुदुहारदुगं।
वेगुव्वछक्कतित्थं, णस्थि हु एमेव सामण्णे ॥२९४।। अर्थ - तिर्यञ्चगति में सर्वरचना गुणस्थानवत् जानना । उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से यहाँ देवायु, मनुष्यायु, नरकायु, उच्चगोत्र, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आहारकशरीर, आहारक अङ्गोपाङ्ग, वैक्रियकशरीर, वैक्रियकअङ्गोपाङ्ग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी और तीर्थङ्कर ये १५ प्रकृतियाँ उदययोग्य नहीं हैं अतः १०७ प्रकृति का उदय पाया जाता है।
विशेषार्थ - पाँचप्रकार के तिर्यञ्चों में से सामान्यतिर्यञ्च के उदययोग्य १०७ प्रकृति ही हैं, गुणस्थान ५ हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में उदय से व्युच्छिन्नप्रकृति ५, उदय प्रकृति १०५, अनुदयप्रकृति २। सासादनगुणस्थान में अनुदयप्रकृति ७, उदयप्रकृति १००, व्युच्छिन्नप्रकृति ९। (सासादन की व्युच्छिन्नप्रकृति ९, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी का उदयाभाव तथा सम्यग्मिथ्यात्व का उदय होने से ) मिश्रगुणस्थान में अनुदय १६, उदय ९१ और व्युच्छित्ति एकप्रकृति की है। (सम्यक्त्व और तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी का उदय