Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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सासादन
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२३१ कषायपाहुडचूर्णिसूत्र के कर्ता आचार्यके अनुसार उदयव्युच्छित्ति, उदय व अनुदयप्रकृतियों की सन्दृष्टिगुणस्थान | उदय- | उदय । अनुदय
विशेष व्युच्छित्ति मिथ्यात्व
पूर्वसन्दृष्टि में १० प्रकृतियों की उदयव्युच्छित्ति कही | है, किन्तु स्थावर, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय की व्युच्छित्ति मिथ्यात्व गुणस्थान में न होकर सासादनगुणस्थान में होती है अतः यहाँ ५ की व्युच्छित्ति कही है। ९ (अनन्तानुबन्धी ४ कषाय+स्थावर एवं एकेन्द्रियादि
चारजाति ।) ११ (५+५+१ नरकगत्यानुपूर्वी) मिश्र
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार असंयत
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार देशसंयत
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार प्रमत्तसंयत
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार अप्रमत्त
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार अपूर्वकरण
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार अनिवृत्तिकरण
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार सूक्ष्मसाम्पराय
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार उपशान्तमोह
पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार क्षीणमोह
| पूर्वसन्दृष्टि के अनुसार सयोगकेवली | ३०
पूर्वसन्दृष्टि में १३वें-१४वें गुणस्थान में साता-असाता अयोगकेवली १२
इन दोनों ही प्रकृतियों का उदय नाना-जीवों की अपेक्षा १४३ गुणस्थान तक माना है, किन्तु यहाँ दोनों में से एक का ही उदय माना है। इसीकारण दोनों गुणस्थानों में उदय-अनुदय प्रकृतियों में पूर्व की अपेक्षा १-१ प्रकृति का अन्तर है।