Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२३५
विशेषार्थ - केवलीभगवान के अनन्तगुणीहीन अनुभागशक्तिवाली असाता का उदय है, क्यों कि पूर्व में अनेक अनुभाग काण्डकों के द्वारा असातावेदनीय की अनुभागशक्ति क्षीण की जा चुकी है और मोहनीय की सहायता का भी अभाव हो गया है अत: असातावेदनीय का अप्रकट सूक्ष्म उदय है तथा जो सातावेदनीय का सत्त्व होता है उसका अनुभाग अनन्तगुणा है। सातावेदनीय की स्थिति की अधिकता संक्लेश से एवं अनुभाग की अधिकता विशुद्धता से होती है, अत: श्रेणि में विशुद्धता विशेष होने से उत्कृष्ट अनुभागबन्ध (सूक्ष्मसाम्पराय के चरम समय में) होना है। फिर उसी अघातित अनुभाग का सत्त्व केवली के भी पाया जाता है ।(धवला १२/१६-१८) इस प्रकार केवली के सातावेदनीय का अनुभाग, सत्त्व व उदय अनन्तगुणा होता है अतः जो असाता का उदय है, वह भी उदयागत अनभागयुक्त सातावेदनीय के द्वारा प्रतिहत हो जाता है।
शंका - कोई कहता है कि सातावेदनीय असातारूप परिणत होती है, ऐसा क्यों नहीं कहते
समाधान - साता का स्थितिबन्ध दो समय का नहीं है, किन्तु उदयरूप एक समयवाला है, अन्यथा कहने पर असाता के बन्ध का प्रसङ्ग आता है, किन्तु वह सम्भव नहीं है, क्योंकि उदयरूप एक समय की स्थिति लिये हुए बँधने वाली साता की पूर्वसमय में सत्ता ही नहीं है अत: साता का असातारूप स्तिबुकसंक्रमण सम्भव नहीं है।
दूसरी बात यह है कि 'एकादशजिने' तथा 'वेदनीये शेषाः' तत्त्वार्थ सूत्र के इन सूत्रों के अनुसार वेदनीयकर्म के निमित्त से होने वाली ११ परीषह केवली के होती हैं ऐसा जो कहा गया है, उसका कारण यह है कि यद्यपि असातावेदनीय का उदय केवली के पाया जाता है। अत: उसके कार्यरूप परीषहों का होना मात्र उपचार से कहा है मुख्यरूपेण तो केवली के परीषह का अभाव ही है।
१. धवल पु, १३ पृ. ५३ २. शंका - यह तो ठीक है किसाता व असाता में से अन्यतर का उदय ही सम्भव है? परन्तु उपशान्तकषायादि गुणस्थानवर्ती
महात्माओं के उदयस्वरूप साता के साथ जब असातावेदनीय उदित होता है तब उनके दोनों साथ में उदित मानने पड़ेंगे? इसका भी कारण यह कि सयोगकेवली तक के सब जीवों के असाता का उदय सम्भव है। (गो. क,२७१) तथा ईर्यापथ आस्रवत्व को परिप्राप्त नवबद्ध साता तो उदयस्वरूप ही होने से नित्य उदित है ही। समाधान - ठीक है। चौदहवें गुणस्थान में साताव असाता में से एक का ही उदय रहता है । ग्यारहवें,बारहवें तथा तेरहवें गुणस्थानों में जब प्राचीन काल की बद्ध असाता का उदय होता है उस समय एक समय स्थिति वाली नवकबद्ध साता भी उदित होती है, अतः इन तीन गुणस्थानों में नवीन बँधने वाली साता तथा प्राचीन असाता, इन दोनों का युगपत् उदय सम्भव है।