Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२३३ देशसंयतगुणस्थान में प्रत्याख्यान की चारकषाय,तिर्यञ्चायु, उद्योत, नीचगोत्र व तिर्यञ्चगति की उदयव्युच्छित्ति होती है। प्रमत्तगुणस्थान में आहारकशरीर, आहारकअङ्गोपाङ्ग, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला की उदयव्युच्छित्ति है॥२६७||
अप्रमत्तगुणस्थान में सम्यक्त्वमोहनीय, अर्धनाराच-कीलित व सुपाटिकासंहननकी अपूर्वकरणगुणस्थान में हास्य,रति,अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उदयव्युच्छित्ति होती है। अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में तीनों वेद व सज्वलनक्रोध के साथ श्रेणी चढ़ने की अपेक्षा सवेदभाग और अवेदभाग में व्युच्छित्ति कहेंगे ॥२६८॥
अनिवृत्तिकरणगुणस्थान के सवेदभाग में तीनों वेद की, अवेद-वेदरहितभाग में क्रम से सञ्चलनक्रोध, सज्वलनमान,सज्वलनमाया इस प्रकार ६ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है। बादरलोभ भी अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में ही व्युच्छिन्न होता है। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान के अन्त में सूक्ष्मकृष्टिको प्राप्त लोभ की एवं उपशान्तमोहगुणस्थान में वज्रनाराच और नाराचसंहनन की उदयव्युच्छित्ति होती है॥२६९॥
क्षीणकषायगुणस्थान के अन्तिम दो समयों में से द्विचरमसमय में निद्रा और प्रचला की तथा चरमसमय में ५ ज्ञानावरण,४ दर्शनावरण और ५ अन्तरायकी इस प्रकार सर्व १६ प्रकृतियों की उदयव्युच्छित्ति होती है।।२७०।।
सयोगकेवलीगुणस्थान में दोनों वेदनीय में से कोई एकवेदनीय, वज्रर्षभनाराचसंहनन, निर्माण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ,सुस्वर-दुःस्वर, प्रशस्त-अप्रशस्त-विहायोगति, औदारिकशरीरऔदारिक अनोपान, तैजस-कार्मणशरीर, ६ संस्थान, वर्णादिचार, अगुरुलघु, उपघात,परघात,उच्छ्वास और प्रत्येक शरीर इन ३० प्रकृतियों की उदयव्युच्छित्ति होती है।।२७१।।
अयोगीगुणस्थान के अन्त में साता-असातावेदनीय में से कोई एक,मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशस्कीर्ति, तीर्थङ्कर, मनुष्यायु और उच्चगोत्र ये १२ प्रकृतियाँ व्युच्छित्तिरूप हैं।।२७२।।
विशेषार्थ - पूर्वमतानुसार एकेन्द्रिय, स्थावर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय का उदय मिथ्यात्व में ही कहा है अत: मिथ्यात्वगुणस्थान के अन्त में इनकी उदयव्युच्छित्ति हो जाती है, किन्तु गाथा २६४ के मतानुसार उपर्युक्त ५ प्रकृतिका उदय सासादनगुणस्थान में कहा अत: इनकी उदयव्युच्छित्ति सासादनगुणस्थान में होती है। सयोगकेवली व अयोगकेवलीगुणस्थान में यहाँ जो साता-असातावेदनीय में से एककी व्युच्छित्ति कही है वह एकजीव की अपेक्षा कथन किया गया है, किन्तु नानाजीवों की अपेक्षा इन दोनों गुणस्थानों में साता-असातावेदनीयकी व्युच्छित्ति नहीं है, क्योंकि सयोगी व