Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २३६
शंका - साता का उदय काल तो अन्तर्मुहूर्त कहा गया है। उसका कुछकम एक कोटिपूर्वतक केवली भगवान के निरन्तर उदय कैसे रह सकता है?
समाधान - सयोगकेवली के अतिरिक्त अन्यत्र साता का उदयकाल अन्तर्मुहूर्त कहा गया है। केवली के निरन्तर उदयरूप एकसमय की स्थितिवाला साता का बन्ध होता रहता है जो अन्यत्र सम्भव नहीं है।
अब उदय- अनुदय दो गाथाओं से कहते हैं
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सत्तरसेक्कारख चदुसहियस्यं सगिगिसीदि छदुसदरी । छावट्टि सट्टि णवसगवण्णास दुदालबारुदया ॥ २७६ ॥
अर्थ - मिथ्यात्व से अयोगी गुणस्थान पर्यन्त क्रम से ११७-१११-१००-१०४-८७-८१७६-७२-६६-६०-५९-५७-४२ और १२ प्रकृति का उदय पाया जाता है।
पंचेक्कारसबावीसट्टारसपंचतीस इगिछादालं ।
पण्णं छप्पण्णं बितिपणसट्टि असीदि दुगुणपणवण्णं ॥ २७७॥
अर्थ - मिथ्यात्वादि १४ गुणस्थानों में क्रम से ५-११-२२-१८-३५-४१-४६-५०-५६६२-६३-६५-८० और ११० प्रकृतियाँ अनुदयरूप हैं। अर्थात् इनका उदय नहीं पाया जाता है।
नोट- गाथा २७७ तक का विशेषकथन गाथा २६३ के विशेषार्थ से जानना चाहिए तथा इस कथन ( उदय - अनुदय - उदयव्युच्छित्ति) सम्बन्धी सन्दृष्टियाँ गाथा २६३ व २६४ में दी गई हैं वहाँ से
जानना ।
उदय - उदीरणारूप प्रकृतियों की विशेषता तीनगाथाओं से कहते हैं
उदयसुदीरणस्स य सामित्तादो ण विज्जदि विसेसो । मोत्तूण तिण्णिठाणं पमत जोगी अजोगी य ।। २७८ ।।
अर्थ - उदय और उदीरणारूप प्रकृतियों में स्वामीपने की अपेक्षा कुछ विशेषता नहीं है, किन्तु प्रमत्त, सयोगी व अयोगी इन तीन गुणस्थानों को छोड़ देना, क्योंकि इन तीन गुणस्थानों में ही विशेषता है, शेष गुणस्थानों में समानता ही है। (अब उसी विशेषता को आगे कहते हैं ।)
१. धवल पु. १३ पृ. ५४ ।