Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - २२२
पर भी जीव के किंचित् ऊन डेढ़गुणहानि से गुणित समयप्रबद्धप्रमाण कर्मों की सत्ता सदाकाल रहती हैं अर्थात् गुणहानि आयाम के प्रमाण को डेढ़ गुणा करने पर जो प्रमाण हो उसमें से कुछ प्रमाण को घटाने पर जो लब्ध आवे उससे समयप्रबद्ध को गुणा करने पर जो लब्ध हो उतने कर्मपरमाणुओं की सत्ता जीव के सदैव पाई जाती है तथा वर्तमान काल में एक-एक समयप्रबद्ध का एक-एक निषेक उदय होते हुए प्रतिसमय एक-एक समयप्रबद्ध का उदय होता है, यह किस प्रकार होता है ? द्व्यर्धगुणहानि से अर्थात् गुणहानि से गुणित समयप्रबद्धमात्र सत्ता है तथा एक-एक समयप्रबद्ध किसप्रकार उदय में आता है ? इस कथन को असन्दृष्टि की त्रिकोण रचना से कहेंगे।
त्रिकोणयन्त्र का अर्थ अइसन्दृष्टि के अनुसार इस प्रकार है
६३०० परमाणु प्रमाण समयप्रबद्ध का बन्ध प्रतिसमय होता है जो आबाधाकाल को छोड़कर ४८ समयरूप स्थिति में क्रम से ४८ समयों में इस प्रकार खिरते हैं- प्रथम गुणहानि- ५१२-४८०४४८-४१६-३८४-३५२ - ३२०-२८८ । द्वितीयगुणहानि- २५६-२४०-२२४-२०८-१९२-१७६१६०-१४४ । तृतीय गुणहानि - १२८-१२०-११२-१०४ ९६-८८-८० और ७२ । चतुर्थ गुणहानि६४-६०-५६-५२-४८-४४-४०-३६ । पञ्चमगुणहानि - ३२-३०-२८-२६-२४-२२-२०-१८। षष्ठगुणहानि- १६-१५-१४- १३-१२-११-१०-९ । इन छहों गुणहानियों में ६३०० परमाणुओं का इस प्रकार विभाजन हो कर परमाणु खिरते हैं। यहाँ जिस समयप्रबद्ध का बन्ध होने पर आबाधाअधिक ४८ समय हो गए उसका और उससे पहले बँधे समयप्रबद्ध का तो कोई भी निषेक सत्ता में नहीं रहा इसलिए उनका तो कुछ प्रयोजन रहा नहीं तथा जिस समयप्रबद्ध का बन्ध होने पर आबाधाअधिक ४७ समय हो चुके उसके ४७ निषेक तो निर्जीर्ण हो गए अन्तिम एकनिषेक शेष रहा वह त्रिकोणयन्त्र में ९ परमाणुरूप ऊपर लिखा तथा इसके नीचे जिस समयप्रबद्धको बँधे आबाधाकालअधिक ४६ समय हो चुके उसके ४६ निषेक तो निर्जीर्ण हो गए शेष दो निषेक सत्ता में रहे सो त्रिकोणयन्त्र में ९ परमाणु और १० परमाणु के दो निषेक लिखे तथा इसके नीचे जिस समयप्रबद्ध को बँधे आबाधा अधिक ४५ समय व्यतीत हो चुके उसके ४५ निषेक तो निर्जीर्ण हो गए, शेष ३ निषेक सत्ता में रहे सो त्रिकोणयन्त्र में ९-१० और ११ के तीननिषेक लिखे हैं। इसी प्रकार जिस-जिस समयप्रबद्ध का बन्ध हुए एक-एक समय कम हुआ है उसके एक-एक घटते हुए निषेक तो निर्जीर्ण हुए तथा शेष एक-एक अधिक निषेक सत्ता में रहे उनको नीचे-नीचे लिखा । जिस समय प्रबद्ध का बन्ध होने पर आबाधा अधिक एक समय हुआ हो उसका एक निषेक तो निर्जीर्ण हो गया, शेष ४७ निषेक रहे, वे १ से ४८० परमाणु के निषेकपर्यन्त लिखे तथा इसके
अन्त में जिस समय प्रबद्ध का बन्ध होने पर मात्र आबाधाकाल ही व्यतीत हुआ और जिसका एक भी निषेक नहीं खिरा उसके ९ से ५१२ पर्यन्त ४८ निषेक ही सत्ता में पाए जावेंगे, सो लिखे हैं । इस प्रकार त्रिकोणयन्त्र के अनुसार निर्जीर्ण होने के पश्चात् जो निषेक शेष रहे वे क्रम से लिखे सो इस सर्व