Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गम्मिटसार कर्मकाण्डं-२२०
द्रव्य आधा-आधा जानना, ३२००-१६००-८००-४००-२००-१०० तथा उस प्रथम गुण हानि सम्बन्धी द्रव्य को गुणहानि आयाम का भाग देने पर मध्यधन होता है, सो ३२०० में ८ का भाग देने पर ३२००५८-४०० सो यह मध्यधन है इसमें एककम गुणहानिआयाम के आधेप्रमाण को निषेक भागहार रूप दो गुणहानि में से घटाने पर जो प्रमाण रहे उसका भाग मध्यधन में देने पर जो प्रमाण आवे वह चय का प्रमाण है। एकगुणहानि ७, इसके आधे ३१ को दो गुणहानि १६ में से घटाने पर १६-३३५२३, इसका भाग मध्यधन में देने पर (४०० २६०३२, यह प्रथम गुणहानि में चय जानना। इस चय को दो गुणहानि से गुणाकर, जो प्रमाण हो वह आदि निषेक है अर्थात् ३२४१६=५१२ आदि निषेक हुआ। इसमें से एक चय (३२) घटाने पर (५१२-३२) ४८०, यह दूसरा निषेक है। इस प्रकार क्रम से प्रथमगुणहानि के अन्तिमनिषेक में प्रथमगुणहानिसम्बन्धी एकचय घटाने पर प्रथम गुणहानि के प्रथमनिषेक से आधाप्रमाण होता है। इसे द्वितीयगुणहानि का प्रथम निषेक जानना। इस प्रकार द्वितीयगुणहानिसम्बन्धी एक-एकचय घटाने पर द्वितीयादिक निषेक होते हैं। यहाँ पूर्वोक्त विधान से प्रथम गुणहानि से द्वितीयगुणहानि में चय का प्रमाण और निषेकों का प्रमाण सर्व आधे-आधे होते हैं। इसके अन्तिमनिषेक में से द्वितीयगुणहानि सम्बन्धी एकचय घटाने पर तृतीयगुणहानिका प्रथमनिषेक होता है। इससे एक-एक चय घटाने पर द्वितीयादिकनिषेक होते हैं। यहाँ चय का और निषेकों का प्रमाण द्वितीयगुणहानि से आधा-आधा जानना। इसी प्रकार गुणहानि-गुणहानिप्रति आधा-आधा प्रमाण है। अब सर्वगुणहानि का यंत्र लिखते हैंप्रथम द्वितीय
चतुर्थ | पञ्चम षष्ठ गुणहानि
गुणहानि गुणहानि गुणहानि | गुणहानि
गुणहानि
गुणहानि
तृतीय
१५
४८० ४४८
सर्वगुणहानियों का कुल द्रव्य ।
६३००
२५६ २४० २२४ २०८ १९२
३८४ ३५२ ३२० २८८
१४४
'७२
चयद्रव्य
३२००
८००
२००
प्रत्येक गुणहानि
का सर्व [ द्रव्य