Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२२४
९४२४१ ९४२४२ ९४२४३ ९४२४४ ९४२४५ ९४२४६ ९४२४७ ९४२४८
२४३ २४६ २४१० २४१५ २४२१ २४२८
यहाँ द्विचरम गुणहानि का चरम निषेक चरम | गुणहानि के चरम निषेक से दूना है। उसके नीचे के निषेक उसी के समान करने के लिए द्विचरम गुणहानि के विशेषों को उसमें से निकाल कर उन्हें पास में स्थापित । किया है। दूसरी पंक्ति में अन्त में शून्य, पश्चात् दूना संकलन रूप प्रमाण लिखा है।
९४२-१८ अर्थात् १८x१-१८ यह तो प्रथमनिषेक और ९४२१८,१८५२-३६ और २४१५२ इनको मिलाने पर ३८ सों और २० मिलकर
लेते हैं। यदि कार अन्त में ९४२-१८ और १८४८१४४ तथा २८४२=५६ ये दोनों मिलने से २०० सो द्विचरम गुणहानि में सर्वनिषेकों का जोड़ जानना । इस द्विचरम गुणहानि में चरम गुणहानि का द्रव्य सर्वत्र एक-एक जगह मिलाने पर त्रिकोण रचना में जोड़ होता है।
जैसे प्रथमगुणहानि का द्रव्य १०० मिलाने पर ११८, उसके नीचे ३८ में १०० मिलाने से | १००+३८-१३८, इसीप्रकार जानना। इसका कारण यह है कि सर्वत्र गुणहानि आयाम में ९/१०/११/ 1 १२/१३/१४/१५/१६ ये निषेक होते हैं। त्रिचरम गुणहानि में दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -
यहाँ त्रिचरम गुणहानि का अन्तिम निषेक चरम गुणहानि ९४४४१
के अन्तिम निषेक से चतुर्गुणा है। उसके नीचे के निषेक उसी के ९४४४२
समान करने के लिए त्रिचरम गुणहानि के विशेषों को उन निषेकों ९४४४३
में से निकाल कर उन्हें पास में स्थापित किया है। दूसरी पंक्ति में ९x४४४
अन्त में शून्य,पश्चात् चतुर्गुणा संकलन रूप प्रमाण लिखा है। ९४४४५ ४४१०
९४४-३६ प्रथम निषेक, ९४४-३६ और ४४१-४ तो ३६+४=४० ९x४४६ ४४१५
द्वितीय निषेक। दोनों का योग ३६+४०-७६ हुआ। अन्त में ९x४x७ ४४२१
९४४-३६ और ४४८३२ अर्थात् ३६+३२६८ अन्तिम निषेक। ९x४४८ ४४२८
९x४४८-२८८,४४२८-११२, दोनों का योग ४०० हुआ। यह त्रिचरम गुणहानि में सर्व निषेकों का जोड़ जानना | इस त्रिचरमगुणहानि में द्विचरम-चरम दोनों गुणहानि का द्रव्य सर्वत्र | एक-एक जगह मिलाने पर त्रिकोण रचना में जोड़ होता है।