Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२२७
अर्थ- सासादनसम्यग्दृष्टि मरणकर नरकगति में नहीं जाता है इसी कारण उसके सासादनगुणस्थान में नरकगत्यानुपूर्वी का उदय नहीं है तथा शेष प्रकृतियों का उदय मिथ्यात्वादि गुणस्थानों में अपने-अपने उदयस्थान के अन्तसमय पर्यन्त जानना ।
विशेषार्थ- यहाँ उदयप्रकरण में व्युच्छित्ति, उदय और अनुदय ऐसे तीन प्रकार से कथन करते हैं- जिस- जिस गुणस्थान में जितनी प्रकृतियों की व्युच्छित्ति कही, उन प्रकृतियों का उस गुणस्थानपर्यन्त उदय जानना तथा उन गुणस्था में से आगे के गुमला में उनका नाम नहीं रहता है और उन गुणस्थानों में जितनी प्रकृतियों का उदय हो सो उदय जानना।
नीचे के गुणस्थान में जितनी प्रकृतियों का उदय कहा हो उनमें से उसी गुणस्थान में जितनी व्युच्छित्ति कही हो उनको घटाने पर उस गुणस्थान के ऊपरवर्ती गुणस्थान में उदय प्रकृति का प्रमाण जानना | यहाँ इतनी विशेषता है कि जो प्रकृति आगे के गुणस्थानों में उदय योग्य है, विवक्षित गुणस्थान में उसका उदय नहीं है तो उसको उस गुणस्थान की उदययोग्य प्रकृतिमें से घटा देना और पूर्वगुणस्थान में जिसका उदय नहीं था किन्तु विवक्षितगुणस्थान में उसका उदय होगा अतः उसको जोड़ देना यही उदयसम्बन्धी व्यवस्था का क्रम है तथा जितनी प्रकृतियों का मूल में उदय कहा उनमें जो प्रकृति शेष रहें उनका अनुदय होता है। इस प्रकार व्युच्छित्ति-उदय और अनुदय का कथन जानना।
___ अब गुणस्थानों में व्युच्छित्तिको षट्खण्डागमके कर्ता श्री पुष्पदंत-भूतबली आचार्य के मतानुसार क्रम से कहते हैं
दस चउरिगि सत्तरसं, अट्ट य तह पंच चेव चउरो य ।
छच्छक्कएक्कदुगदुग,चोद्दस उगुतीस तेरसुदयविधि ॥२६३॥ अर्थ- अभेदविवक्षा से मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में क्रम से उदयव्युच्छित्ति १०-४-११७-८-५-४-६-६-१-२-२-१४-२९ और १३ प्रकृति की जानना।
विशेषार्थ- कर्मकी १४८ प्रकृतियों में से अभेदविवक्षा से उदययोग्य १२२ प्रकृतियाँ हैं। उदयव्युच्छित्ति गुणस्थानों के क्रम से होती गई है जैसे-मिथ्यात्वगुणस्थान में १० प्रकृति की उदयव्युच्छित्ति है। सासादनगुणस्थान में उदय से व्युच्छिन्नप्रकृति चार हैं। इस मत में एकेन्द्रिय, स्थावर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय नामकर्मकी इन प्रकृतियों की उदयव्युच्छित्ति मिथ्यात्वगुणस्थान में ही होती है, सासादन गुणस्थान में इनका उदय पुष्पदंत-भूतबली आचार्य के मतानुसार नहीं है तथा यतिवृषभाचार्य के मतानुसार इनका उदय सासादनगुणस्थान में भी कहा है। मिश्रगुणस्थान में १,असंयतगुणस्थान में १. धवल पु. १ सूत्र ३६ पृ. २६१, धवल पु. ३ सूत्र ७४-७६।। २. जयधवल पु. २ पृ. १०८ व १२२ । धवल पु. ४ पृ. १६५ “जे पुण देवसासणा एइदिएसुप्पज्जति त्ति भणंति।"