Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२१९
दो बार असंख्यात से भाजित आवलिप्रमाण है। अर्थात् आवलिको दोबार असंख्यातसे भाग देने पर जो प्रमाण हो उतने प्रमाण है। स्थितिस्थानों में नानागुणहानि का भाग देने पर जो प्रमाण हो उतना एक गुणहानि का आयाम जानना । इसका दूना करने पर दो गुणहानि होती है।आवलिका असंख्यातवाँभागप्रमाण अन्योन्याभ्यस्तराशि है।
यहाँ जघन्यस्थिति बन्धाध्यवसायस्थान में अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान असंख्यातलोक प्रमाण हैं और सबसे स्तोक हैं, इसको मुख कहते हैं। ‘पदहतमुखमादिधनं' गुण हानि आयाम रूप जो पद, उससे मुखको गुणा करने पर जो प्रमाण हो वह आदिधन है। एककम पद जो गुणहानिआयाम, उसको आधा कर इसको चय से गुणाकरके पुन: पदसे गुणा करने पर जो प्रमाण आवे वह चयधन है। आदिधन और चयधन को मिलाने पर प्रथमगुणहानि का सर्वद्रव्य होता है। इस प्रकार गुणहानि-गुणहानिप्रति दूनादूना क्रम से करके अन्तिमगुणहानि में एककम नानागुणहानिप्रमाण दो के अंक रख कर उन्हें परस्पर में गुणा करने पर गुणकार का प्रमाण होता है और यह अन्योन्याभ्यस्तराशि का आधाप्रमाण है। इससे आदिगुणहानि के द्रव्य को गुणा करने पर अन्तिमगुणहानि का सर्वद्रव्य होता है। तथा “अंतधणं गुणगुणियं आदिविहीणं रुऊणुत्तरभजियं" इस सूत्र से अन्तिम गुणहानि के द्रव्य को गुणकार दो से गुणा करके उसमें से आदि गुणहानि का द्रव्य घटाने पर गुणाकाररूप उत्तर जो दो उसमें से एक घटाने पर एक रहा, उसका भाग देने पर उतना ही रहा, सो यह सर्वगुणहानिका द्रव्य है। यह जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान सम्बन्धी अनुभागबंधाध्यवसायस्थानों का प्रमाण हुआ। एक स्थितिभेद के अनुभागबंधाध्यवसायस्थान भेद इतने हुए तो पूर्वोक्त सर्वस्थितिभेदों के अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान कितने होंगे? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर लब्धराशि का जो प्रमाण हो वह स्थिति बन्धाध्यवसायस्थानों से असंख्यातगुणा जानना तथा इन अनुभागबन्धाध्यवसायस्थानों से कर्म के प्रदेशरूप परमाणु अनन्तगुणे
अब इसी को अङ्क सन्दृष्टि से कहते हैं
एक समय में जितने परमाणु बँधते हैं उसे समयप्रबद्ध कहते हैं। इसका प्रमाण ६३००,कर्मकी स्थिति का प्रमाण ४८ समय, नानागुणहानि ६,एक-एक गुणहानि में जितनी स्थिति हो वह एक गुणहानि का आयाम है उसका प्रमाण ८, नानागुणहानि प्रमाण दो के अङ्क लिखकर परस्पर गुणा करने पर अन्योन्याभ्यस्तराशि ६४, गुणहानि के आयाम को दूना करने पर दो गुणहानि १६ । इस प्रकार एककम अन्योन्याभ्यस्तराशि (६३) का भाग सर्वद्रव्य ६३०० में देने पर ६३००५६३= १०० आए, यह अन्तिम गुणहानि का प्रमाण जानना। इससे दूना-दूना द्रव्य आदि की गुणहानिपर्यन्त जानना, सो आधेप्रमाण अन्योन्याभ्यस्तराशि ३२ से अन्तिमगुणहानि के द्रव्य १०० को गुणा करने पर आदिगुणहानि का द्रव्य होता है। (१००४३२-३२००) यह प्रथम (आदि) गुणहानि का द्रव्य है। इससे द्वितीयादि गुणहानि का