Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२१८
अनुकृष्टिविधान की रचना स्थितिभेद | स्थितिबन्धाध्य- समस्त स्थितिबंधाध्यवसायस्थानों का स्पष्टीक
वसायस्थान
२२२ २१८ २१४ २१० २०६ २०२ १९८
१९४
१८६ १८२ १७८ १७४
४३
१६६ १६२
अणुभागाणं बंधज्झवसाणमसंखलोगगुणिदमदो।
एत्तो अणंतगुणिदा कम्मपदेसा मुणेदव्वा ॥२६०॥ अर्थ : इन स्थिति बन्धाध्यवसायस्थानों से असंख्यातलोकगुणे अनुभागबन्धाध्यवसायस्था हैं। इससे अनन्तगुणे कर्मों के परमाणु हैं।
विशेषार्थ : जघन्यस्थितिबन्ध के कारण जो स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान उन सम्बन्ध अनुभागबंधाध्यवसायस्थान असंख्यातलोक को असंख्यातलोक से गुणा करे स असंख्यातलोक असंख्यातलोकप्रमाण है सो यहाँ पर द्रव्य जानना तथा जघन्यस्थितिबन्ध के कारण ज स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान हैं वे यद्यपि असंख्यातलोकबार अविभागप्रतिच्छेदों की षट्स्थानवृद्धि के लिये हुए हैं तथापि असंख्यातलोकमात्र ही है। उन्हें यहाँ स्थिति स्थान जानना । नानागुणहानिशलाक