Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२०५
उत्कृष्टपरिणामयोगस्थान पर्यन्त योगस्थानों में जीवों का विभाग अकसन्दृष्टिवत् इस प्रकार जानना !
किंचित्ऊन तिगुने गुणहानिआयाम का भाग सर्वद्रव्य में देने पर यवमध्यका प्रमाण होता है। इसमें दो गुणहानि का भाग देने पर चय का प्रमाण होता है। इस चय को दो गुणहानि से गुणा करे तो यवमध्य होता है तथा उसके ऊपर की गुणहानि में प्रथमनिषेक यवमध्य के प्रमाण उपरितन द्वितीयादिक निषेक एक-एक चयरूपहीन जानना, सो एकझम गुणहानि के आयाम प्रमाण चय यवमध्य में से घटाने पर प्रथमगुणहानि के अन्तिमनिषेक का प्रमाण होता है। इसमें एक विशेष (चय) घटाने पर यवमध्य से आधा प्रमाण होता है वही द्वितीयगुणहानिका प्रथमनिषेक जानना । इसके ऊपर एक विशेष घटाने पर द्वितीयादिक निषेक होते हैं, सो एककम गुणहानिआयामप्रमाण विशेष घटाने पर अन्तिम निषेक होता है। यहाँ प्रथमगुणहानि में जो चयका प्रमाण था उसका आधा द्वितीयगुणहानि में चयका प्रमाण जानना तथा द्वितीयगुणहानि के अन्तिमनिषेक में से एक चय घटाने पर द्वितीयगुणहानि के प्रथमनिषेक से आधा प्रमाण होता है वही तृतीय गुण हानि का प्रथमनिषेक जानना। इससे द्वितीयगुणहानि के चय से आधा प्रमाण जो चय सो एक-एक चय घटाने पर द्वितीयादिनिषेक होते हैं। इस प्रकार अन्तिमगुणहानिपर्यन्त जानना।
गुणहानि-गुणहानिप्रति जीवद्रव्य आधा-आधा जानना तथा अधस्तनगुणहानि में यवमध्य के नीचे प्रथमगुणहानि के प्रथमनिषेक से अन्तिमगुणहानि के अन्तिमनिषेकपर्यन्त गुणहानि-गुणहानिप्रति समस्त निषेकों में जो-जो उपरितनगुणहानि के निषेकों में प्रमाण कहा उसमें से अपनी-अपनी गुणहानि जितना-जितना विशेष (चय) का प्रमाण कहा, उतना-उतना निषेक में से घटाने पर निषेक का प्रमाण होता है। इसी को कहते हैं -
उपरितनप्रथमगुणहानिसम्बन्धी प्रथमनिषेक यवमध्य के बराबर है। उसमें से प्रथमगुणहानि में जितना विशेष(चय) का प्रमाण कहा उतना घटाने पर अधस्तनप्रथम गुणहानिसम्बन्धी प्रथमनिषेक का प्रमाण होता है तथा उपरितनप्रथमगुणहानि के द्वितीय निषेक के प्रमाण में से प्रथमगुणहानि के विशेष (चय) का प्रमाण घटाने पर अधस्तन प्रथमगुणहानिसम्बन्धी द्वितीयनिषेकका प्रमाण होता है। इस प्रकार प्रथमगुणहानि के अन्तिमनिषेकपर्यन्त जानना । उपरितनद्वितीयगुणहानि के प्रथमनिषेकसम्बन्धी प्रमाण में से द्वितीयगुणहानि के विशेष (चय) का प्रमाण घटाने पर अधस्तनद्वितीयगण हानि सम्बन्धी प्रथम निषेकका प्रमाण जानना। उपरितनद्वितीयगुणहानि के द्वितीयनिषेक में से उतना ही चय घटाने पर अधस्तनद्वितीयगुणहानि के द्वितीयनिषेकका प्रमाण होता है। इस प्रकार अन्तिमनिषेकपर्यन्त जानना । ऐसे ही तृतीयादिक गुणहानि में भी ऋण का प्रमाण अपने-अपने विशेष (चय) के समान जानकर निषेकों
१. "सुहुमबुद्धीए णिहालिज्जमाणे किंचूणतिण्णिगुणहाणिमेत्तजवमज्झाणि होति॥" (धवल पु. १० पृ. ७८) "एदं
किंचूणतीहि गुणहाणीहि ओवष्ट्रिदे जेण जवमज्झमागच्छदि तेण जवमज्झपमाणेण सब्बदब्वे अवहिरिज्जमाणे किंचूणतिण्णिगुणहाणिकालेण अवहिरिजदि त्ति सिद्धं ।" (धवल पु. १० पृ. ८०)