Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२१३
विकल्प प्राप्त होता है, क्योंकि वह एक आकाशप्रदेश सम्बन्ध से अपूर्वमुखाकार रूप से परिणमनका हेतु है । पुन: दूसरे सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्त जीव के उसी जघन्य अवगाहना के साथ तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने पर अपूर्वमुखाकार प्राप्त होता है उस समय दूसरा तिर्यञ्चगतिप्रायोग्यानुपूर्वीविकल्प होता है। इस प्रकार जघन्यअवगाहनाका आलम्बन लेकर घनलोकप्रमाण तिर्यञ्चगतिप्रायोग्यानुपूर्वी के उत्तरोत्तर प्रकृतिविकल्पों के प्राप्त होने तक अपूर्व- अपूर्व मुखाकारों के साथ तिर्यञ्चों में उत्पन्न कराना चाहिए। जघन्यअवगाहना का आलम्बन लेकर तिर्यञ्चगतिप्रायोग्यानुपूर्वी के इतने ही विकल्प उपलब्ध होते हैं, क्योंकि इनसे अधिक मुखाकारों का प्राप्त होना यहाँ सम्भव नहीं है। सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकों के सबसे जघन्यअवगाहना के साथ तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने पर नूतन नूतन मुखाकार उत्कृष्ट रूप से यदि बहुत होते हैं तो वे घलोकप्रमाण होते हैं, यह उक्त कथन का तात्पर्य है । पुनः एक प्रदेश अधिक सर्वजघन्य अवगाहना के आश्रय से भी घनलोकप्रमाण ही तिर्यञ्चगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म के विकल्प होते हैं। इसी प्रकार दो प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना से महामत्स्य की उत्कृष्ट अवगाहनापर्यन्त इन सर्व अवगाहनाओं सम्बन्धी पृथक्-पृथक् घनलोकप्रमाण तिर्यञ्चगतिप्रायोम्यानुपूर्वी के विकल्प उत्पन्न कराने चाहिए ।
अब सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तक की सबसे जघन्य अवगाहना को महामत्स्य की अवगाहना में से घटाकर जो शेष रहे उसमें एक अङ्क मिलाकर श्रेणी के असंख्यातवेंभाग प्रमाण से घनलोकको गुणित करने पर जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उतनी ही तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वीनामकर्मकी उत्तरोत्तर प्रकृतियाँ होती
हैं |
मनुष्यगत्यानुपूर्वी मनुष्य क्षेत्रविपाकी है। मनुष्यक्षेत्र मनुष्यों के पर्याप्त अपर्याप्त पंचेन्द्रियपना होने से उनकी उत्पत्ति के योग्य ४५ लाख योजन प्रमाण गोल विष्कम्भ से गुणित त्रसनाली एक राजु प्रतर प्रमाण है । मानुषोत्तर से बाहर चारों कोनों में मनुष्यों की उत्पत्ति न होने से चौकोर क्षेत्र नहीं कहा है। आदि की छह पृथ्वियों के नारकी, त्रस, स्थावर, कर्मभूमिया तिर्यंच और मनुष्य तथा देव मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। वे मनुष्यानुपूर्वी के उदय से अपना पूर्व आकार नहीं छोड़ते । अतः जघन्य अवगाहना
गुल के असंख्यातवें भाग से पूर्वोक्त क्षेत्र को गुणा करने पर पहला भेद और उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात घनांगुल से गुणा करने पर अन्तिम भेद होता है। अतः " आदि अंते सुद्धे" सूत्र के अनुसार अन्त में से आदि को घटा कर एक का भाग देकर और एक जोड़ने पर जो प्रमाण हो उतने भेद मनुष्यानुपूर्वी के हैं।
१ उत्सेधघनागुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण सबसे जघन्य अवगाहना के द्वारा सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकजीव विग्रहगति से मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ । यहाँ मनुष्यगति-प्रायोग्यानुपूर्वीका एक विकल्प प्राप्त होता है।
१. धवल पुस्तक १३ पृ. ३७८