Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - १७२
विशेषार्थ इन ३० प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध श्रेणी में होता है, किन्तु अप्रत्याख्यानावरणकषाय का चतुर्थगुणस्थान में और प्रत्याख्यानावरण का पञ्चमगुणस्थान में होता है, अतः जो श्रेणीपर आरूढ़ नहीं हुए अथवा चतुर्थ व पञ्चमगुणस्थान को प्राप्त नहीं हुए उनके इन ३० प्रकृतियों का अनुत्कृष्टप्रदेशबन्ध अनादि है, जो चढ़कर पुनः गिर गये हैं उनके सादि है भव्य की अपेक्षा अध्रुव और अभव्य की अपेक्षा ध्रुव है। शेष कर्मों का उत्कृष्टप्रदेशबन्ध सञ्जीपञ्चेन्द्रियपर्याप्तजीवों के सम्भव होने से पुन: पुन: हो सकता है, अतः शेष प्रकृतियों का अनुत्कृष्टप्रदेशबन्ध सादि व अध्रुवरूप होता है। आयु के अतिरिक्त सर्वप्रकृतियों का जघन्यप्रदेशबन्ध सूक्ष्मएकेन्द्रिय अपर्याप्तक जीव के भव के प्रथम समय में होता है जो पुनः पुनः हो सकता है। आयुकर्म का बन्ध तो आठअपकर्षकाल में ही होता है, अतः ३० प्रकृतियोंका उत्कृष्ट, जघन्य व अजधन्यप्रदेशबन्ध तथा शेष प्रकृतियों का उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य व अजघन्यप्रदेशबन्ध कादाचित्क होने से सादि और अध्रुव है।
उत्तरप्रकृतिसम्बन्धी चतुर्विधप्रदेशबन्ध में सादि इत्यादि ४ भेदों की सन्दृष्टि
प्रदेशबन्ध के प्रकार ती प्रकृति
नब्बेप्रकृति
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उत्कृष्ट
अनुत्कृष्ट
अजघन्य
जघन्य
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अथानन्तर उत्कृष्टप्रदेशबन्ध होने की सामग्री बताते हैं
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'उक्कडजोगो सण्णी पज्जत्तो पयडिबंधमप्पदरो ।
कुणदि पदेसुक्कस्सं जहण्णये जाण विवरीदं ॥ २१० ॥
अर्थ - जो जीव उत्कृष्टयोगों से सहित हो, सञ्ज्ञीपर्याप्त और अल्पप्रकृतियों का बन्धक होता है, वही जीव उत्कृष्टप्रदेशबन्ध को करता है तथा जघन्यप्रदेशबन्ध में इससे विपरीत जानना अर्थात् जघन्ययोग से सहित असञ्ज्ञी अपर्याप्त बहुतप्रकृतियों का बन्धक जघन्यप्रदेशबन्ध करता है।
आगे मूल प्रकृतिसम्बन्धी उत्कृष्टबन्धका स्वामित्व गुणस्थानों की अपेक्षा कहते हैं -
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आउक्स्स पदेसं, छक्कं मोहस्स णव दु ठाणाणि । सेसाणं तणुकसाओ, बंधदि उक्तस्सजोगेण ॥ २११ ॥